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________________ मन्त्रिसमुद्देश .... .................. समस्या केबल एक शाम्बावाले वृक्षसे अधिक छाया होसकती है ? नहीं होसकतो, उसीप्रकार सन मन्त्रीम गश्यके महान कार्य सिद्ध नहीं होमकते ॥८॥ । अनि विद्वान ने भी कहा है कि जिमप्रकार एक ही शाग्वा (डाली) वाले वृक्षसे छाया नहीं होती, कर अकेले मन्त्रीसे राम-कार्य सिद्ध तहीं होमकतं ।।१।।' भापनिकालमें सहायकोंकी दुर्लभता- कार्यकाले दुर्लभः पुरुषसमृदायः ॥८॥ ध-बालिकाल पानेपर कार्य करनेवाले सहायक पुरुपोका मिलना दुर्लभ होता है । अतएव कि या राजा कार्य में सहायक पुरुपको पहले ही मंग्रह करे। सारांश यह है कि यपि भविष्य. वाली भारत्तसे बचाव करने के लिए पहलेसे सहायक पुरुषोंके रखने में अधिक धनराशिका व्यय का समापनातक पु+प उसकी परवाह न करे । क्योंकि धन-व्ययकी अपेक्षा सहायक पुरुषोंके संग्रहको सानिमन अधिक महत्व दिया है और इसोकारण विजिगीषु राजालोग भविष्यमें होनेवाले शत्रों के वारिसे राएको मुरक्षित रखने के लिये विशाल सैनिक-संगठन करने में प्रचुर धनराशिके व्ययकी ओर मान नहीं देते। क्योंकि आपत्तिकाल आनेपर उसीसमय सहायक पुरुषोंका मिलना कठिन होता है ।।३।। किसी विद्वान् नीतिकार ने कहा है कि 'विवेकी पुरुषोंको आपत्तिसे छुटकारा पाने के लिये पहलेसे सहायक पुरुष रखने चाहिये, क्योंकि आपत्ति पढ़नेपर तत्काल उनका मिलना दुर्लभ होता है ।।१।। पास ही सहायक पुरुषों का संग्रह न करनेसे हानि". दीप्ते गृहे क्रीदर्श कूपखननम् ।।८४|| अर्थ-मकानमें आग लगजानेपर उसे बुझाने को तत्काल पानीफे लिए कुत्रा खोदना क्या उचित है ? नहीं । मारांश यह है कि जिसप्रकार मकानमें लगी हुई पागको बुझाने के लिए उसी समय . कुत्रा ग्योदना व्यर्थ है, उसीप्रकार आपत्ति आनेपर उसे दूर करनेके लिए सहायक संग्रह व्यर्थ है ||४|| नीतिकार चाणिक्य ने कहा है कि 'नैतिक पुरुषको पहलेसे ही विपत्तिके नाशका उपाय चितवन करलेना पाहिए, अकस्माम् मकानमें आग लग जानेपर कुएका खोदना उचित नहीं ॥१॥ धन-व्ययको अपेक्षा सहायफ पुरुषों के संग्रहकी विशेप पयोगिता न धनं पुरुषसंग्रहाबहु मन्तव्यं ॥८॥ अर्ध-सहायक पुरुषों के संग्रह की अपेक्षा धनको उत्कृष्ट नहीं समझना चाहिए । इसलिए धनाभि लापी एवं विजिगीष राजाओं को सहायक पुरुपोंका संमह करना चाहिए | । तथा च अधिः-पासस्य माया प्रजायते । तपकमात्रणा राक्षः सिरिः कृत्येषु नो भवेत् ॥१॥ २ उन-अमे-माने मकन्याः सहायाः सुविकिभिः । भापलाशाय ते पस्माद् दुर्लभा म्यरमे स्थित ॥१॥ ३ साचापिय:-विपदाम प्रतीकारं पूर्वमेव प्रचिन्तयेत् । म पखनन युक्स' प्रदीप्ने सहसा योm
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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