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________________ १५८ नीतिवाक्यामृच अर्थ-राजाओंको तीन, पांच या सात मंत्री नियुक्त करने चाहिये। सारांश यह है कि विपम संख्यावाले मंत्रिस इलका परस्परमें एक मत होना कठिन है; इसलिये वे रास्यके विरुद्ध षड्यन्त्र गायन वगैरह--करने में असमर्थ रहत है; अतः राजाको तीन, पांच या सात मंत्री रखनेका निर्देश किया गया है १ ॥ परम्पर ईर्षा करनेवाले मन्त्रियोंसे हानि विषमपुरुषसमूहे दुर्लभमैकमत्यं* ॥ ७२ ।। अर्थ-यदि राजा परस्परमें ईर्ण करनेवाले मंत्रि-मण्डलको नियुक्त करे, तो उसकी किसी योग्य राजकीय कायमें एक सम्मति होना कठिन है ।।७२ ।। राजपुत्र' विद्वान्ने भी कहा है कि 'आपसमें ईर्षा करनेवालोंकी किसी कार्य में एक सम्मति नही होती; इसलिये राजाको परस्परमें स्पर्धा (ई) न करनेवाले पारस्परिक प्रेम ब सहानुभूतिसे रहनया-- मंत्रियोंकी नियुक्ति करनी चाहिये ॥१॥ बहुत मंत्रियोंसे होनेवाली हानि यो मत्रिणः परस्परं स्वमतीरुत्कर्षयन्ति x ७३॥ अर्थ-परस्परमें ईर्षा रखनेवाले बहुतसे मंत्री राजाके समक्ष अपनी २ बुद्धिका महत्व प्रकट करके अपना २ मत पुष्ट करते हैं। सारांश यह है कि ईपालु बहुतसे मंत्री अपना २ मत पुष्ट करने में प्रयत्न शील होते हैं, इससे राज-कार्यमें हानि होती है ।।७।। भ्य' विद्वान्ने कहा है कि 'जो राजा वहुतसे ईर्षालु मंत्रियोंको रस्ता है, तो ये अपने २ मतको उत्कृष्ट समझ कर राज-कार्यको नष्ट कर डालते हैं।' स्वेच्छाचारी मंत्रियोंसे हानि स्वच्छन्दाश्च न विजम्भन्ते ॥७॥ अर्थ--स्वेच्छाचारी मंत्री अपसकी उचित सलाह नहीं मानते ॥७४|| अत्रि' विद्वान्ने भी कहा है कि 'स्वेच्छाचारी मंत्री राजाके हितैषी नहीं होते और मंत्रणा करते हुए उचित वातको नहीं मानते ॥१३॥ र उक्त पत्रका यह अर्थ भी होसकता है कि विषम मंत्रिमण्डत (सीन, पांच या सात) के रहनेपर उसका परस्पा मिसकर राजाका प्रतिबंदी (विरोधी) होना दुसम है, यह अर्थ भी प्राकरणिक है, क्योंकि ये सब द्वारा विषम मंत्रिमंडल के रखनेका प्राचार्यश्रीने स्पष्ट निर्देश किया है। सम्पादक, तथा च राजपुत्रः-मिथः संस्पर्षमानानां मैफ संजायते मतं । स्पर्धाहीमा सस: कार्या मंत्रिणः पृथिवीभुजा ॥१॥ . x 'पहवो मंत्रिण: परस्परमतिभिस्कषयन्ति ऐसा मुमू० प्रतिमें पाठ है, परन्तु अभिप्राय दोनोंका एक है । संपादक २ तथा र रैम्पः-घडूश्च मंत्रियो गजा सम्पद्धाश् करोति यः । नन्ति स नृपकार्य यत् स्थमंत्रस्य कृता बराः ।। ६ तथा च अनिः-स्वरदा मंत्रिणा न न कुर्वशित योधिन । मंत्र मंत्रयमाणाश्च भूषम्याडमा: स्मृताः ||
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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