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________________ * नीतिवाक्यामृत * Pleasemuner -नार्ता माद्दशः म स्वरूप या वैश्योंकी जीविकाः-- कृषिः पशुपालने वणिज्या च वार्ता वैश्यानाम् * ॥१॥ -ोती, पशुपालन और व्यापार करना यह वैश्योंकी जीविका-जीवन-निर्वाहका माधन है। समापार-भगवजिनसेनापार्य ने कहा है कि इतिहामके आदिकालमें भगवान् ऋषभदेव तीर्थसाधी सीवन रक्षाके लिये उसे असि-शस्त्र-धारण, मषि-लेखनकला, कृषि-ग्येती, विद्या, वामापार और शिल्पकला इन जीविकोपयोगी ६ माधनोंका उपदेश दिया था ||१|| क-क्त जीवन-निर्वाहक साधनों में में कृषि, पशुपालन और ध्यापार यह पैश्य-वर्णको दिक साधनोंकी उन्नतिसे राजाको होनेवाला लाभ: वार्तासमृद्धौ सर्वाः समृद्धयो गज्ञः ||२|| वर्ष-जिस राजाके राज्यमें वार्ता-कृषि, पशुपालन और व्यापार-श्रादि प्रजाके जीविकोपयोगी नों-की उमति होती है, यहाँपर उसे ममन विभूतियाँ ( हाथी-घोदे और सवर्ण-मादि) प्राण बिहामने लिखा है कि 'जिस राजाके राज्यमें शरत और भीम ऋतुम खेतीकी फसल अच्छी और व्यापारको उन्नति होती है, उसे असंख्यात धर्म, अर्थ और भोगोपभोग प्राप्त होते हैं ॥१॥ सांसारिक मलोंके साधनः4 तस्य खलु संसारसुख पस्थ कृषिर्धेनवः शाकबाटः समन्युदपाने च ॥३॥ -बिस गृहस्थ के यहां खेतर, गाय-भैंसें, शाक-तरकारीके लिये मुन्दर बगीचा और मकानमें पानी से परिपूर्ण-भरा हा फुभा है उसे सांसारिक सुख प्राप्त होता है || विहानने लिखा है कि 'जिस गृहस्थ के यहाँ खेती, गाय-भैंसें, शाक-तरकारीको बगीपा और मीका हुआ है, इसे स्वर्गके सुखोंसे क्या लाभ ? कोई लाभ नहीं ॥१।' इमिः पशुपालन गणिज्या पति यातामा पाट मु. म. प्रनिमें है उमका अर्थ है कि कपि, पशुपारम. स्पायर के प्रजाके जीवन- निर्वाइके साधन है। अधिकिपिर्विद्या बागिन्य शिल्पमेव का। कोणीमान योदा स्युः प्रजाजीवनातवे | आदिपुराणे भगवजिनमेनाचार्यः । मानसा मु मा प्रतिमें पाट है परन्तु एकवचन बहुवचनके सिवाय कोई अर्थ-मेव नहीं है। *बाशुका+षियं रशियाश्च यस्य स भवम्त्यमी । धमीर्षकामा म्पत्य नस्य सः संख्यया विमा.10 बार शुक:-कृषिगोशाकवाटारन जलाश्रयममन्त्रिता । हो यस्य भवन्स्येने वर्गलोकेन तस्य पिम् ||१||
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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