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________________ * नीतिवाक्यामृत 1449010801 १३७ मार्गदर मौका स्वभाषा फरके की अपेक्षा करना, ईश्वर- श्रादिकी पूजन करना और मात्रिका होता है। अथवा दान --शुद्धि, दया और दाक्षिण्य आदि करनेका होता है। 1 )♠♠♠-- 'दान' शब्द 'देप शोधने' धातुसे निष्पन्न होनेके कारण शुद्धिको तथा दानार्थक 'दर' होनेसे दान को भी कहता है; अतः उक्त दोनों अर्थ होते हैं ||३१|| या स्वभाव दूसरों पर बलात्कार करनेका होता है ||३२|| दकिकी प्रकृति स्वभावसे छल-कपट करनेकी होती है ||३३|| नपा के सरलता और कुटिलता स्वाभाविक ही होती है ॥३४॥ -शान्तिका उपाय: दानावसान: कोपो ब्राह्मणानाम् ||३३|| काकोध दानपर्यन्त रहता है-दान मिलनेसे शान्त होजाता है । - माँगी हुई वस्तुके मिल जानेपर ब्राह्मणोंका क्रोध नष्ट हो जाता है ||३५|| विज्ञानने लिखा है कि 'जिसप्रकार सूर्यके उदय होनेपर रात्रिका समस्त अंधेरा तत्काल नष्ट सीमकार लोभी वाझणका क्रोध भी दान मिल जानेसे शांत हो जाता है ॥१॥ - शान्तिका उपायः - प्रथमासान: कोपो गुरूणाम् ||३६|| गुरुजनोंका कोष प्रणाम करने पर्यन्त रहता है, परन्तु प्रयोग करनेके पश्चात् नष्ट होजाता को शान्तिका उपायः — प्रायादसानः कोप: क्षत्रियाणाम् ||३७|| विद्वान्ने लिखा है कि 'जिसप्रकार दुडके माथ किया हुआ उपकार नष्ट हो जाता है, उसीप्रकार प्रयाम करनेसे नष्ट होजाता है ।।१।।' क्रोध-शांतिका उपाय: प्रियवचनावसानः कोषो वणिग्जनानाम् ||३६|| -क्षत्रियोका कोध मरण पर्यन्त - चिरकाल तक रहता है। अथवा उनका क्रोध प्राणीको होता है। - क्योंकि क्षत्रिय जिस मनुष्षपर क्रुद्ध होजाता है तो वह उसके मारणहरण किये बिना ॥ वाक्यात टी० पृष्ठ ३१ । तथाच गर्गः - दुर्जने सुकृतं यत्कृतं याति च संज्ञयं । तद्वत् कोनो गुरु वामन प्रणश्यति॥१॥ निधिकः कोनो वाणिजिकानाम्' ऐसा ० ० पुस्तक राठ है, पर अर्थ मेद कुछ नहीं ।
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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