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________________ २० * नीतिवाक्यामृत * ३ व्याकरण-जिससे भापाका शुद्धलिखना, पढ़ना और बोलनेका बोध हो। ४ निरुक्तः-यौगिक, रूढ़ि और योगरूढ़ि शब्दोंके प्रकृति और प्रत्यय-श्राविका विश्लेषण करके प्राकरणिक द्रव्यपर्यायात्मक या अनेक धर्मात्मक पदार्थके निरूपण करनेवाले शास्त्रको 'निरुक्त' कहते हैं। ___५ छन्दः-पयों-वर्णवृत्त और मात्रवृत्त छन्दों के लक्ष्य और लक्षण के निर्देश करनेवाले शास्त्रको 'छन्दशास्त्र' कहते हैं। ६ ज्योतिषः-प्रहोंकी गति और उससे विश्षके ऊपर होनेवाले शुभ और अशुभ फलोंको तथा प्रत्येक कार्यके सम्पादनके योग्य शुभ समयको बतानेवाली विद्याको ज्योतिर्विद्या कहते हैं। इसप्रकार ये ६ वेदार हैं। इतिहास, पुराण, मीमांसा (विभिन्न और मौलिक सिद्धान्त.वोधक वाक्योंपर शास्त्राविरुद्ध युक्तियोंद्वारा विचार करके समीकरण करनेवाली विद्या), न्याय (प्रमाण और नयोंका विवेचन करनेवाला शास्त्र) और धर्मशास्त्र (अहिंसा धर्मके पूर्ण तथा व्यवहारिक रूपको विवेचन करनेवाला उपासकाध्ययन शास्त्र) उक्त १४ चौदह विधास्थानोंको 'त्रयीविद्या कहते हैं ॥१॥ प्रयी-विद्यासे होनेवाले लाभका निर्देशः त्रयीतः खलु वर्णाश्रमाणां धर्माधर्मव्यवस्था ॥ २ ॥ अर्थः-त्रयी-विद्यासे समस्त वर्ण-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र तथा पाश्रमों-ब्रह्मचारी गृहस्थ, बानप्रस्थ और गति-में वर्तमान मनुष्योंके धर्म-अधर्म-कर्तव्य-अकर्तव्य-का मान होता है ॥२॥ यशस्तिलकचम्पूमें प्राचार्यश्री' ने श्रयी-वियाके विषयमें लिखा है कि जिस विद्याके द्वारा संसारका कारण जन्म, जरा और मृत्युरूप-त्रयी क्षय-नाश को प्राप्त हो उसे अयो-विशा' कहते हैं ।। १ ।। निष्कर्ष:-वर्ण-पाश्रम में विभक्त जनता अब अपने २ कम्य-प्रकव्यका मान प्राप्त करके कर्तव्यमें प्रवृत्त और अकर्तव्यसे निवृत्त होजाती है, तब यह अन्म, जरा और मृत्युरूप सांसारिक दुःखोंसे छुटकारा पालेती है; अतः प्राचार्यश्री की उक्त मान्यता में किसीप्रकार का विरोध नहीं पाता ॥२॥ श्रयी-विद्यासे लौकिक लाभ: स्वपक्षानुरागप्रवृत्या सर्वे समवायिनो लोकव्यवहारेवधिक्रियन्ते ॥ ३ ॥ अर्थात्--उपासकाभ्ययन अङ्गमें तीन प्रकारकी सियाएं- म्य, दीक्षान्मय और कर्षमयक्रियाएं(संस्कार) सम्यग्दष्टियों द्वारा अनुमान करनेयोग्य, उसमफलदात्री और कल्याण करनेवाली विद्वानों द्वारा कहीं गई ॥१२॥ गर्भान्वयक्रियाओंके गर्भाधानादि ५३, दीक्षान्वयक्रियानोंके ४८ और कत्रपक्रियानोंके ७ भेद गणधरोने निरूपण किये हैं। उनके नाम अनुकमसे को जाते है ।।३-४॥ . निष्कर्षः-श्रादि पुराणके उक्त संस्कार-निरूपक प्रकरणको 'क' कहा जासकता है, क्योंकि इसमें गापान संस्कारसे लेकर मोनपर्यम्त धार्मिक संस्कारों का विशद विवेचन प्राचार्य भीने किया है । । तथा च यशस्तिलके सोमदेवरि: जातिर्जरा मृतिः पुसा त्रयी संसृतिकारणं । एषा त्रयी यतस्त्रया धीयते स सा प्रयी मता ॥1॥
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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