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* नीतिवाक्यामृत *
निग्रह नहीं करता-उसे प्रजा अपना स्वामी-राजा-महीं मानती, जिस प्रकार स्त्रियाँ नपुमकको पनि नहीं मानतीं ॥१२॥
शत्रु ओंका पराजय न करनेवालेकी कही बालोचना:
स जीवन्नपि मृत एव यो न विक्रामति प्रतिकूलषु ॥४१॥
अर्थ:-जो व्यक्ति शत्रुओंमें पराक्रम नहीं करता-उनका निग्रह नहीं करता-वह जाक्ति होगा हुआ भी निश्चयसे मरे हुएके समान है ।।४१॥
शुक्र विद्वान्ने लिखा है कि 'जो राजा शयाने पराक्रम नहीं करता, वह लुहारको छांकनीक समान साँस लेता हुमा भी जीवित नहीं माना जाता ||शा'
माधकविने भी कहा है कि जो मनुष्य लोकमें शत्रु ओंसे किये गये तिरस्कारके दुःयस ग्पिन्नदुःखी-होता हुआ भी जीवित है, उसका जीवित रहना अच्छा नहीं-उमका मरजाना ही उत्सम है। उत्पत्ति आदिके समय माताको कष्ट देनेवाले उस कायर मनुष्य की यदि उत्पत्ति ही नहीं होती नो अम्छा था '
पुनः पराक्रम-शून्यकी हानिका निर्देशः
भस्मनीव निस्तेजसि को नाम निःशः पदं न कुर्यात् ॥४२॥
अर्थः-पाश्चय है कि भस्म-राव-के समान तेज-शून्य-पराक्रम-हीन (मैनिक और ग्वजान की शक्तिसे रहित) राजाको कौन मनुष्य निडर होकर पराजित करने तत्पर नहीं होता ? अर्थात मी लोग उसे पराजित करने तत्पर रहते हैं।
अर्थान् जिस प्रकार अग्नि-शून्य केवल भस्मको साधारण व्यक्ति भी पैरोंसे ठुकरा देता है मो. प्रकार पराक्रम शून्य-सैनिक और खजानेकी शक्तिसे रहित--राजाकं साथ साधारण मनुष्य भी वगावस करने तत्पर हो जाता है।
शुक्र विद्वानने भी कहा है कि 'अग्नि-रहित भस्म के समान पराक्रम-हीन राजा निडर हुए साधारण
तथा शुक:परिवन्धिषु यो राजा न करोति पराक्रमम् । सलोइकारभस्त्रेव श्वसमपि न जीवति || २ तथा च माघकवि:
मा जीवन यः परावज्ञाद:खदग्धोऽपि जीवति । तस्थाजननिरेवा जननीक्लेशकारियः ॥१॥ ३ भस्मान वाम्नेजमे या को नाम निःश न दधाति पदम् । समकार मु. और १. लि. मूल अतियों में
पाठ है परन्तु अर्थभेद कुछ नहीं है। ४ नधा च शुक:शौर्येस रहिनो राजा होनेरयभिभूयते । भस्मराशिर्यभानग्निनिश स्पृश्यतेऽरिभिः ||