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________________ ११२ * नीतिवाक्यामृत * संस्कारका स्वरूप निर्देशः सातिशयलाभः संस्कारः ॥ ३१ ॥ प्रथैः-सज्जन पुरुषों तथा राजा-आदिके द्वारा किये गये सन्मानसे जो मनुष्यकी प्रतिष्ठा होती है उसे 'संस्कार' कहते हैं ।। ३१ ।। गर्ग' विद्वान्ने लिखा है कि 'राजकीय सन्मानसे' सज्जनोंके आदरसे तथा प्रशस्त भक्तिसे जो मनुष्य ! को सन्मान आदि मिलता है उससे उसकी प्रतिष्ठा होती है ॥१।। संस्कार-ज्ञानविशेष-का लक्षण निर्देश:--- अनेककर्माभ्यासवासनावशात् सद्योजातादीनां स्तन्यपिपासादिकं येन क्रियत इति संस्कारः ॥३२॥ अर्थः-इस प्राणीने आयुष्य कर्मके आधीन होकर पूर्व जन्मोंमें अनेक बार दुग्धपानादिमें प्रवृत्ति की थी, उससे इसकी श्रात्मामें दुग्धपानादि विषयका धारणारूप संस्कार उत्पन्न होगया था । उस संस्कारकी पासनाके वशसे जो स्मरण---यह दुग्धपान मेरा इष्ट साधन है इस प्रकारका स्मृतिज्ञान-उत्पन्न होता है वही संस्कारसे उत्पन्न हुआ स्मरण उत्पन्न हुए बच्चोंको दुग्धपान आदिमें प्रवृत्त करता है ।। ३२ ।। गौतम नामके दार्शनिक बिद्वान्ने भी अपने गौतमसूत्रमें कहा है कि यह प्राणी पूर्व शरीरको छोड़कर जब नवीन शरीर धारण करता है उस समय-उत्पन्न हुए बच्चेकी अवस्थामें- क्षुधासे पीड़ित हुत्रा पूर्वजन्म में अनेकवार किये हा अभ्यस्त आहारको ग्रहण करकेही दग्धपानाक्षिमें प्रवत्तिक इसके दुग्धपानमें प्रवृत्ति और इच्छा बिना पूर्वजन्म संबंधी अभ्यस्त आहार-स्मरणके. कदापि नहीं हो सकती क्योंकि वर्तमान समय में जब यह प्राणी सुधासे पीड़ित होकर भोजनमें प्रवृत्ति करता है उसमें पूर्व-दिनमें किये हुए आहार संबंधी-संस्कारसे उत्पन्न हुआ स्मरण ही कारण है ।। १ ।।" शरीरका स्वरूपः भोगायतनं शरीरम् ॥ ३३ ॥ अर्थः-जो शुभ-अशुभ भोगोंका स्थान है वह शरीर है ।। ३३ ॥ हारीत विद्वानने भी कहा है कि यह प्राणी शरीरसे शुभ-अशुभ कर्म या उसके फल-सुख-दुखको भोगता है इसलिए इस पृथ्वीतलपर जितने सुख-दुःस्त्र कहे गये हैं, उनका शरीर गृह-स्थान है ||१|| १ तथा च गर्गःसन्मानाद्भूमिपालस्य यो लाभः संप्रजायते । महाजनान्च सद्भक्तेः प्रतिमा तस्य सा भवेत् ॥1॥ २ उक्त सूत्र मु० और ह. वि. मू०प्रतियोंसे संकलन किया गया है, क्योंकि सं० टी० पु. में नहीं है। ३ तथा च गौतमःप्रेत्याहाराभ्यासकृतात् स्तन्याभिलाषात् ॥ १॥ गौतमसूत्र अ. ३ श्रा० १ सूत्र २२ वां । ४ तथा च हारीत: सुरवदुःखानि यान्यत्र काम से घरणीतले । तेषां गृहं शरीरं तु यत: कर्माणि सेवते IOE
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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