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________________ * नीतिघाक्यामृत * अब यी विद्याके पढ़नेम होनेवाले लाभका निरूपण करते हैं:__ यी पठन् वर्णाश्रमाचारष्वतीव प्रगल्भते, जानाति व समस्तामपि धर्माधर्मस्थितिम् ॥५८।। अर्थ:--त्रयीविद्या-चरणानुयोग शास्त्र-फा येत्ता विद्वान् वर्ण (प्रामण और क्षत्रिय आदि ) और पाश्रमों (ब्रह्मचारी और गृहस्थ आदि) के ज्ञान प्राप्त करनेमें समर्थ होता है तथा समस्त धर्म-अधर्म अर्थान कर्तव्य अकनन्यकी मर्यादाको भलीभाँति जानता है ॥५८।। भब वार्ता विद्यामें निपुणता प्राप्त करनेसे होनेवाले लाभका वर्णन करते हैं: युक्तितः प्रवर्तयन् वार्ता सर्वमपि जीवलोकमभिनन्दयति लभते च स्वयं सर्वानपि कामान् ।।६।। अर्थः-लोकमें वार्ताविधा-कृषि आदिकी शिक्षा की समुषित प्रवृत्ति-प्रचार--करानेवाला राजा प्रजाको सुखी बनाता है तथा स्वयं भी समस्त अभिलपित्त भौतिक सुखोंको प्राप्त करता है ।। ५६ ।। अब देउनीतिमें प्रवीण राजाको होनेवाले लाभका निरूपण करते हैं: यम इवापराधिषु दण्डप्रणयनेन' विद्यमाने राज्ञि न प्रजाः स्त्रमर्यादामनिक्रामन्ति प्रसीदन्ति च त्रिवर्गफला: विभूतयः ॥६०॥ . अर्थः-राजाको यमराजके समान कठोर होकर अपराधियोंको दंडविधान करते रहने पर प्रजाके लोग अपनी २ मर्यादा ( कर्तव्य-पालनकी सीमा ) को उल्लधन नहीं करते-मर्थान् अपने २ वर्णाश्रम धर्म पर भारूड होकर दुष्कृत्योंमें प्रवृत्ति नहीं करने, अतः उसे धर्म, अर्थ और काम इन तीनों पुरुषार्थीको उत्पन्न करनेवाली विभूतियाँ प्राप्त होती हैं ।। ६०॥ ... 'अप्रणयिनि राज्ञिरेसा मु. मू० और १० ल० मूल प्रतियोंमें पाठ है परन्तु अर्थ मेन कुछ नहीं है।
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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