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________________ * नीतित्राक्यामृत है DHANUMA R o ....inke........ ... . को आम हो जाता है तब वह पागल हाथीकी तरह राज्यपदके योग्य नहीं रहता-अर्धा जिस हाथी जनमाधारणको भयंकर होता है उसी प्रकार जब मनुष्यभे राजनैतिक ज्ञान, प्राचार धीरता आदि गुण नष्ट होकर उनके स्थानमें मुर्वता अनाचार और कायरता आदि दोष - सबबह पागल हाथीकी तरह भयंकर होजानमे गज्यपाह के योग्य नहीं रहना ! ४ ॥ मदेव विद्वानने लिखा है कि 'राजपुत्र शिष्ट और विद्वान् होने पर भी यदि उसमें द्रव्य (राज्य मे अद्रव्यपन-मूर्खता अनाचार और कायरता आदि दोष-होगया हो तो वह मिश्रगुणमरश भयंकर होने कारण राज्यके योग्य नहीं है ॥२॥।' हितामने कहा है कि 'जो मनुष्य समस्त गुणा(राजनैतिकज्ञान, सदाचार और शूरता आदि)म में राजद्रव्य कहते हैं-उसमें राजा होने की योग्यता है-चे गुण राजाओंको समस्त सत्कर्तव्योंमें र करते हैं ॥१॥ गुरूप का वर्णन करते हैं:.::. ... द्रव्यं हि क्रियां विनयति नाद्रव्यं ॥४४॥ म-गुणों से अलंकृत योग्य पुरुष-राज्यपदको प्राप्त कर सकता है निर्गुण-मूर्स-नहीं। SHI सिप्रकार अच्छी किस्मके पत्थर शाण पर रक्खे जानेसे संस्कृत होते हैं साधारण नहीं, परवान और कुलीन पुरुष ही राज्य आदि उत्तम पदके योग्य है मूर्ख नहीं ॥४४ विद्वान् ने लिखा है कि 'प्रायः करके गुणवान पुरुषोंके द्वारा राजाओंके महान कार्य सफल मूबसे छोटासा कार्य भी नहीं हो पाता ॥शा सब और उनके लक्षणोंका कथन करते हैं:सपा-श्रवण-ग्रहण-धारणाविज्ञानाहापोह तत्वाभिनिवेशा बुद्धिगुणाः॥४॥ Mi . सामाभोव: जो शिवम्योऽनि म्यादन्यस्वभावकः । musभो गजो मित्रगुणो यथा ॥ गुगोपेतो राजद्रयं तदृश्यते । सानां तदई त्यसाधनम् ॥१॥ सायं भूपतीनां प्रमिड्यति । सामायी निगुणैरपि नो लघु ॥ १ || देषिया' इति बुद्धिगुणाः' इसप्रकार म० ए० में पाद है किन्नु अर्थभेद कुछ नहीं है। . .
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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