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________________ नीतिवाक्यामृत * समान मनुष्यभी नीतिशास्त्रके ज्ञान के बिना शत्रुओंके घश होजाता है. उनके द्वारा पजित ... में लिखा है कि 'जिसप्रकार बलवान मनुष्य भी शस्त्रों-हथियारों से रहित होनके मार दिया जाता है उसीप्रकार बुद्धिमान मनुष्य भी नीतिशास्त्रका ज्ञान न होनेसे मासे मार डाला जाता है ॥शा' एष नीतिशास्त्रका ज्ञान होना मनुष्यमात्रको अत्यन्त आवश्यक है ॥३४।। हानसे होनेवाले लाभका वर्णन करते हैं: प्रलोचनगोचरे ह्यर्थे शास्त्र वृतीयं लोचनं पुरुषाणाम् ॥३॥ से पदार्थ या प्रयोजन नेत्रोंसे प्रतीत नहीं होता उसको प्रकाश करने के लिये शास्त्र मनुष्योंका ANSE .. किसीभी कतव्य अथवा उसके फल में यदि संदेह उपस्थित होजावे कि यह कार्य योग्य है ? । इसका फल अच्छा है या बुरा ? तो उसको दूर करने में शास्त्रज्ञान ही समर्थ हो सकना ध नहीं कर सकती ॥३५॥ नने लिखा है कि 'जो कार्य चक्षुओंके द्वारा प्रतीत न हो और उसमें संदेह उपस्थित मानसे उसका निश्चय कर उसमें प्रवृत्ति या निवृत्ति करनी चाहिये ।' ले शून्य पुरुषका विवरण किया जाता है: अनधीतशास्त्रश्चक्षुष्मानपि पुमानन्ध एव ॥३६॥ बड पुरुभने शास्त्रोंका अध्ययन नहीं किया वह चक्षुसहित होकरके भी अन्धा ही हैर मनुष्यको सामने रखे हुए इष्ट और अनिष्ट पदार्थका ज्ञान नहीं होसकता उसी प्रकार ले पस्य-मूर्खमनुष्य-को भी धर्म और अधर्म-कर्तव्य और अकर्तव्य-का ज्ञान नहीं मार भी उक्त बातका समर्थन करता है कि, "जिसप्रकार अंधा मनुष्य सामने रक्खी हुई को नहीं देख सकता उसीप्रकार शास्त्रज्ञानसे हीनपुरुष-मूर्य-भी धर्म और अधर्म सस्ता | "नालयामविहीनो यः प्रजावानपि हन्यते । पर: छत्रविहीनस्तु चौरा रवि वीर्यवान् ॥११॥ १ अरश्यो निजचजुयी कार्य सन्देहमागते । शास्त्रेण निश्चयः कार्यस्तवर्षे च किया स्तः :१॥ ३ तथा च भागुरि:शुभाशुभ न पश्येच यथान्धः पुरसः स्थितं । शास्त्रहीनत्तया मल्यों पौधों न विन्दति ॥१॥
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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