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________________ नियुक्ति साहित्य : एक पर्यवेक्षण ९३ चूर्णिकार के अनुसार वनस्पति में स्वप्न, दोहद, रोग आदि सभी लक्षण पाए जाते हैं। वनस्पति में जीवत्व के अनेक हेतु षड्दर्शनसमुच्चय की टीका में है। पौधों में अनुभूति संवेदनशीलता और चेतना होती है, इसका सर्वप्रथम प्रयोग आचार्य जगदीशचन्द्र वसु ने किया। उन्होंने यंत्र के माध्यम से पौधों की प्रतिक्रियाओं को ग्राफ पर उतारकर दिखलाया। उन्होंने देखा कि पौधों में हीनता और उच्चता के भाव भी होते हैं। उनमें हिंसक को देखकर भय सथ अपमान होने पर कोध संज्ञा जागृत होती है। आचार्य वसु ने पौधों को मदिरा निलाई पौधे पर मंदिर का वही असर हुआ, जो मानव पर होता है। पौधे ने अपनी मदहोशी ग्राफ पर अंकित कर दी। अमेरिका में यह खोज हो चुकी है कि पौधों की अपनी भाषा होती है। अपनी सांकेतिक भाषा में आने वाले खतरों या कीड़े-मकोड़ों से बचने हेतु रसायन बनाते हैं तथा पड़ोसी पेड़ को सूचना देते हैं। अफ्रीका के घने जंगलों में कुछ ऐसे मासांहारी वृक्ष पाए जाते हैं, जिनकी शाखाओं पर ढालनुमा फूल लगते हैं तथा इन पर होने वाले कांटे दो फीट लम्बे होते हैं । जब कोई प्राणी भूल से उधर से गुजरता है तो ये अपनी कंटीली शाखाओं को फैलाकर प्राणी को घेर लेते हैं और अपने जहरीले कांटों से व्यक्ति का खून पी जाते हैं। आधुनिक वनस्पति विज्ञान के जनक कार्ल दान लिनिअसं के अनुसार पौधे बोलने व कुछ सीमा तक गति करने के अलावा मानव से किसी भी अर्थ में कम नहीं होते। जापान का वैज्ञानिक हशीमोतो पौधों से बातचीत कर लेता था । वह पोलोग्राफ के चिह्नों को ध्वनि के रूप में रूपान्तरित करने में सफल हो गया था अतः उसने पौधों को एक से बीस तक की गिनती सिखा दी। जब पौधों से पूछा जाता कि दो और दो कितने होते हैं तो वह जिन ध्वनियों में उत्तर देता, उसे रेखाकृति में बदलने पर चार पृथक्पृथक् रेखाकृतियां उभर आतीं । नियुक्तिकार ने न केवल तर्क द्वारा स्थावर जीवों में जीवत्व - सिद्धि की है अपितु उनकी हिंसा न करने का भी निर्देश दिया है। उन्होंने बार-बार इस बात की उद्घोषणा की है कि व्यक्ति अपने सुख की खोज में इन पृथ्वी, अप् आदि जीवों की हिंसा करता है। स्थावरकाय में जीवत्व-निरूपण नियुक्तिकार की मौलिक एवं वैज्ञानिक देन है। भिक्षु का स्वरूप नियुक्तियां लगभग आचारपरक ग्रंथों पर लिखी गयीं अत: इनमें स्वतः आचार के अनेक विषयों का समावेश हो गया है। पंच आचार का सुंदर वर्णन दशवैकालिक नियुक्ति में मिलता है। इसी प्रकार पर्युषणाकल्प का वर्णन भी साध्वाचार की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। मुनि के वर्षावास स्थापित करने के अनेक विकल्प उस समय की आचार -परम्परा का दिग्दर्शन कराते हैं। उत्तराध्ययननियुक्ति में वर्णित परीषद् का विवरण कर्मशास्त्रीय एवं सैद्धान्तिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। नियुक्तिकार ने लगभग ९ द्वारों के माध्यम से परीणहों का सर्वागीण वर्णन किया है। इसी प्रकार सामाचारी, विनय, समाधिमरण धज्जीवनिकाय आदि का वर्णन भी जैन आचार की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है । १. आचू पृ. ३५: सुयण- दोहल- रोगादिल पञ्चभागिया । २. षड्दर्शनसमुच्चय टी. पृ. २४२-४५ । ३. आनि १४ । ४. दशनि १५४-६१ : ५. दनि ५३-१२० t ६. उनि ६९-१४१1
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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