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________________ imilia . ८८ नियुक्तिपंचक भिन्नता है. जो इस प्रकार है - वर्णान्तर अम्बष्ठ उम्र सुरुः क्षत्रिय पप निषाग | ब्राहाग पारसपूत ] 1.12 अयोगव क्षत्रिय ब्राह्मण क्षत्रिय | दैश्य शुद्र कृत विदेहक चाण्डाल वैश्य शूद्र शूद स्त्री । वैयर। शूद्रा । वैश्या । शूद्रा भद्रा । ब्रह्माणी, क्षत्रिया नेण्यः । ब्राहारी भत्रिया ब्राह्मणी इन जातियों का विस्तृत वर्णन महाभारत के अनुशासन पर्व में मिलता है। जैन पुराणों में भी अनेक जातियों एवं उपजातियों का उल्लेख मिलता है।' वर्णान्तर के संयोग से उत्पन्न जातियां नियुक्तिकार ने वन्तर से उतान्न चार जातियों का उल्लेख किया है। उनके अनुसार उग्र पुरुष से क्षत्त स्त्री में उत्पन्न जाति श्वपाक, दैदेह पुरुष से सत्त स्त्री में उत्पन्न जाति वैणाव, निषाद पुरुष से अम्लष्ठ अथवा सूद्र स्त्री में उत्पन्न जाति बुक्कस तथा शूद्र पुरुष और निषाद स्त्री से उत्पन्न जाति कुक्कुरक कहलाती है। मनुस्मृति में वर्णसंकर जातियों के संयोग से उत्पन्न अनेक जातियों का उल्लेख है। उनकी उत्पत्ति का क्रम इस प्रकार है वर्णशंकर आवृत। आभीर धिग्वण" | पुक्कस कनकूटक। श्वपाक [ घेणार मैवेयक ब्राझाग । हाण ब्रह्मण | निशाद | शृद्र | वैदेह अम्बष्ठी अयोगी निषादी | संग अम्बष्ठी अयोगवी क्षत मार्गवरी निषाद अयोगही स्त्री मज्झिमनिकाय में बुक्कस और वैणाव आदि पांच जातियों को हीन माना है। वैदिक ग्रंथों में और भी अनेक वर्णसंकर जातियों का उल्लेख मिलता है लेकिन यहां केवल नियुक्ति में आयी वर्णसंकर जातियों की तुलना के लिए ग्रंथान्तर के उद्धरण दिए हैं। चूर्णिकार ने इनको सच्छंदमतिविगप्पितं माना है अर्थात् वैदिक परम्परा में वर्ण एवं वर्णसंकर जातियों की उत्पत्ति के विषय में जो कुछ कहा गया है, वह स्वच्छंदमति की कल्पना है।" स्थावरकाय चारांग सूत्र का प्रारम्भ अस्तित्व-बोध की जिज्ञासा से होता है। भगवान् महावीर स्पष्ट कहते हैं कि पांच स्थावर जीवों के अस्तित्व के साथ ही अन्य प्राणियों का अस्तित्व टिका हुआ है। जो लोक (स्थावर जीवों) के अस्तित्व को नकारता है, वह अपने अस्तित्व को नकारता है। स्थावर जीवों में ६ .१/४/१४ १५ । २. मभा. अनुशासन गई। ३ जैन पुराने का ....... ५२.५३ । ४. अन २६. २७। ५.७. मनु १०/१५ । ८.९ मनु१०/१८ १०.११. मनु १०/१२ । १२. मनु.१०/३३ १३. मा. १०/३४ मर्गव को दास और कैवर्त भी कहा जाता था। १४. भरिझम २/५/३! १५. आयू ६ १६. आप रो १/६६।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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