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________________ नियुक्तिपंचक सुंडिया-उन्मत्तता । जा सुरातिसु गेही सा सुंडिया भण्णति। सुरा आदि के प्रति गृद्धि सोंडिका कहलाती है। (दशजिचू. पृ. २०३) सुत्तरुइ--सूत्ररुचि । सुत्तरुयी सुत्तं पढतो संवेगमावज्जति । सूत्र को पढ़ने से जो संवेग को प्राप्त होता है, वह सूत्ररूचि है। (दशअचू. पृ. १८) सुपणिहियजोगी-सुप्रणिहितयोगी। जो पुण सुपणिहियजोगी सो सुभासुभविषागं जाणइ। जो शुभ और अशुभ दिपाक को जानता है, वह सुप्रणिहितयोगी कहलाता है। (दशजिच्. पृ. २७०) सुपण्णत्त-सुप्रज्ञप्त। सुपण्णत्ता महाबुद्धिसिस्साणं प्रज्ञापिता। शिष्यों को अपनी-अपनी योग्यता एवं बुद्धि के अनुसार प्रज्ञापित करना सुप्रज्ञाप्त है। (दशअचू. पृ. ७३) सुभग-सुभग। अप्पिच्छित्तणेण सुभगो भवइ । जिसकी इच्छाएं अल्प हैं, वह सुभग कहलाता है। (दशजिचू.पृ. २८२) सुसंतुह-सुसंतुष्ट । जेण वा तेण वा आहारेण संतोसं गच्छ, सो सुसंतुट्टो भण्याइ। जो जिस किसी प्रकार के भोजन से संतोष प्राप्त कर लेता है, वह सुसंतुष्ट कहलाता है। (दशजिचूपृ. २८२) सुसमाहिय-सुसमाहित । नाण-देसण-चरितेस सुलु आहिता सुसमाहिता। जो ज्ञान, दर्शन और चारित्र में सम्यक् रूप से भावित होता है, वह सुसमाहित है। (दशअचू. पृ. ६३) सुह-सुख । सरीरमनसोरनुकूल सुखमिति । शरीर और मन के जो अनुकूल होता है, वह सुख है। (आटी.पृ. १०१) सूय-सूत । खतिएणं बंभणीए जाओ सूओ ति भण्णति। क्षत्रिय पुरुष से ब्राह्मण स्त्री में उत्पन्न संतान सूत कहलाती है। (आचू. पृ. ५) सूर-शूर । शवत्यसौ युद्ध मुंचति वा तमिति शूरः। जो युद्ध को श्मशान बना देता है, वह शूर है। जिसको सब छोड़ देते हैं कोई सामने नहीं आता, वह शूर है। (उचू. पृ. ५९) सूरप्पमाणभोई-सूर्यप्रमाणभोजी। सूरप्पमाणभोई सूर एव प्रमाणं तस्य उदिते सूरे आरद्ध जाव ण अस्थमेश ताव भ॑जति सज्झायमादी ण करेति, पडिनोदितो रुस्सति । जो सूर्योदय से सूर्यास्त तक खाता रहता है,स्वाध्याय आदि नहीं करता, प्रेरणा देने पर रुष्ट होता है, वह सूर्यप्रमाणभोजी है। (दचू. प. ७,८) सोप-श्रोत्र । श्रृणोति भाषापरिणतान् पुद्गलानिति श्रोत्रम् । जो भाषा रूप में परिणत पुद्गलों को सुनता है, वह श्रोत्र (कान) है। (आटी.पृ. ६९) सोयण-शोक । असुपुष्णनपणस्स रोयणं सोयणं । अश्रुपूर्ण नयनों से रूदन करना शोचन/शोक है। (दशअचू. पृ. १७)
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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