SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 761
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिशिष्ट ७ : परिभाषाएं • संपसारगो णाम असंभताण असंजमकज्जेस साम छदेवि उवदेस वा। गृहस्थों के असंयममय कार्यों का समर्थन करने वाला तथा उनका उपदेश देने वाले को संप्रसारी कहा जाता है। (सूचू.१ पृ. १७८) समुच्छिम-सम्मूच्छिम। सम्मुच्छिमा नाम जे विणा बीएण पुढविपरिसादीणि कारणाणि पप्प उति । जो उत्पादक बीज के बिना केवल पृथ्वी, पानी आदि कारणों से उत्पन्न होते हैं, वे सम्मूर्छिम कहलाते हैं। (दशजिचू. पृ. १३८) संघर-संवर । संवरो नाम पाणवहादीण आसवाणं निरोहो भपणइ। प्राणातिपात आदि आत्रवों के निरोध को संवर कहते हैं। (दजिचू. पृ. १६२, १६३ ) संवेयणी-संवेजनी । संवेग संसारदुक्खेहितो जणेति संवेदणी। __संसार के दुःखों से संवेग प्राप्त कराने वाली कथा संवेजनी है। (दशअचू, पृ. ५५) संसय--संशय। संशय्यते च अर्घद्वयमानित्य बुद्धिरिति संशयः। व्यर्थक शब्द के प्रति बुद्धि में जो विपर्यास होता है, वह संशय है। (उचू. पृ. १८३) संसार-संसार। अट्ठविहो जोणिसंगहो संसारेति पवुबइ। आठ प्रकार का योनि संग्रह-उत्पत्ति-स्थल संसार कहलाता है। (आचू.पृ. ३६) • संसरति तासु तासु गतिष्विति संसारः। विभिन्न गतियों में संसरण करना संसार है। (उचू. पृ. ९७) संहिता-संहिता। संहिता अविच्छेदेण पादो। संहिता का अर्थ है-अव्यवच्छिन्न पाठ का उच्चारण। (दशअचू. पृ. ९) समार-संस्कार। शुभाऽशुभकर्म संस्कुर्वन्तीति संस्काराः। जो शुभ-अशुभ कर्मों से वासित करते हैं, वे संस्कार कहलाते हैं। (सूचू.१ पृ. २९) सच्च-सत्य। सच्च-अणुवधायगं परस्स वयणं । दूसरे का उपघात न करने वाला वचन सत्य है। (दशअचू.पृ. ११) सव-शठ। सो नाम अन्यथा संतमात्मानमन्यथा दर्शपति। जो स्वयं को दूसरे रूप में प्रदर्शित करता है, वह शठ है। (उचू. पृ. १३३) सबल-शबल । सालको वा जयणार सेवंतो सबलो भवति। जो पुष्ट आलंबन से अथवा यतनापूर्वक अनासेव्य का सेवन करता है, वह शबल (चारित्री) (दघू.प. ९) सण्णा-संज्ञा। पुष्यदिछमत्यमाझ्दिसंस्कारादि एसा सण्णा। ___ पूर्वदृष्ट अर्थ से संस्कारित होना संज्ञा है। (दशअच्. पृ. ६७) सभा-सभा। सभा नाम नगरादीर्ण मणी देसे कौरति। नगर आदि के मध्य में निर्मित जन-स्थान सभा कहलाता है। (आचू. पृ. ३११) सभिक्खु-सभिक्षु। अविध कम्मखुर, तेण निरुतं सभिक्खु ति। आठ प्रकार के कर्मों का भेदन करने वाला सद्भिक्षु होता है। (दशनि,३१७)
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy