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________________ परिशिष्ट ७ : परिभाषाएं ६३३ मार्गतार-धर्मशाला। तत्र आगत्य आगत्यागास तिष्ठति त आगंवागारम्। जहां आ-आकर पथिक ठहरते हैं, वह आगंतागार-धर्मशाला है। (आचू. पृ. ३४०) आगास-आकाश। आकाशम्ते-दीप्यन्ते स्वधमोंपेता आत्मादयो यत्र तदाकाशम्। अपने-अपने धर्मों से युक्त पदार्थ जहां दीप्त होते हैं, वह आकाश है। (दशहाटी.प. ६९) आणापाणु-आन -अपान । णासिकागतस्स वातस्स अंतो अणुप्पवेसणमाणू पाहिं निच्छुभणं आणापाणू। नासिकागत वायु को भीतर ले जाना 'आन' तथा बाहर निकालना 'अपान' है। (दशअचू. पृ. ६७) आणारुइ-आज्ञारुचि। जा तित्यगराणं आणा त आणं महता संवेगसमावनी पसंसई एस आणारुई। जो तीर्थकरों की आज्ञा की तीव्र संवेग से प्रशंसा करता है, आदर करता है, वह आज्ञारुचि (दजिचू.पू. ३३) आतजोगि-आत्मयांगी। आतजोगीण ति जस्स जोगा बसे वटुंति आप्ता वा यस्य जोगा। जिसके योग वशवों होते हैं अथवा जिसके योग आस हैं. वह आप्तयोगी कहलाता है। (दचू.प. २७) आयंक-आतंक । फुसंति पावंति आगता अंगं संकामेन्ति आयंका। जो बाहर से आकर शरीर का स्पर्श करते हैं, उसे प्राप्त करते हैं तथा उसमें सक्रांत होते हैं, वे आतंक-सद्योघाती रोग हैं। (आचू. पृ. २०३) • सारीरमाणसेहि दुक्खेहि अप्पार्ण अंकेति आतंको। शारीरिक और मानसिक दुःखों से जो व्यक्ति को आतंकित करता है, वह आतंक है। (आचू. पृ. ३८) आली-आलीढ, युद्ध को मुद्रा विशेष । तत्यालीढं दाहिणपादं अम्गहुत्तं काट वाम पादं पच्छतोहुर्त ओसारेति, अंतर दोह धि पायाणं पंचपादा। धनुर्धर के खड़े रहने की एक अवस्थिति विशेष आलीट है, जिसमें दक्षिण पैर आगे और वाम पैर पीछे रहता है। दोनों के मध्य पांच कदमों का अन्तर होता है। (दचू.प. ४) आवण-आपण। आवणं कयविकयत्थाणं। क्रय-विक्रय का स्थान आपण है। (दशअचू. पृ. ११७) आवेसण-आवेसन । आगंतुं विसति जहियं आवेसणं । जहां आगंतुक आकर बैठते हैं, वह आवेसन है। (आचू. पृ. ३११) आसायणा-आशातना। मिच्छापडिवत्तीए, जे भावा जत्य होंति सब्भूता। तेसिं तु वितहपडिवजणाए आसायणा तम्हा।। सद्भूत अर्थ को मिथ्या प्रतिपत्ति के द्वारा वितथरूप में स्वीकार करना आशातना है। (दनि.१९) • आयं सादयति आसादणा। जो आय-लाभ का विनाश करती है, वह आशातना है। (दचू. प. ११)
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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