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________________ परिशिष्ट ७ : परिभाषाएं ६३१ जो आहार, उपधि आदि नहीं मिलने पर भी दीन नहीं बनता, वह अदीनत्ति हैं। (दशजिवू पृ. ३२२) अदेसकालपलावि-क्षेत्र और समय को जाने बिना बोलने वाला। अदेसकालपलावी जाहे किंचि कर्ज अतीतं ताहे भणति जति पकरेंतो सुन्दरं होतं, मए पुव्वं चैव चिंतितेलयं । अदेशकालप्रलापी वह होता है, जो कार्य सम्पन्न होने पर सोचता है कि यदि मैं यह कार्य कर लेता तो कितना अच्छा होता। मैंने पहले ही यह सोच रखा था। (उच प. १९७) अपडिण्ण-अप्रतिज्ञ। अप्रतिज्ञः इह परलोकेषु कामेषु अप्रतिज्ञः अमूर्च्छित अद्विष्टो वा। जो इहलोक और परलोक सम्बंधी कामभोगों में अमूर्छित और आकांक्षारहित होता है. वह अप्रतिज्ञ है। (सूचू १ पृ. १८५) अप्पिच्छ-अल्पेच्छ । अप्पिच्छया णाम जो ण मुच्छ करेइ, ण वा अतिरित्ताण गिण्हइ। प्राप्त पदार्थों में मूच्छा न करने वाला तथा आवश्यकता से अधिक न लेने वाला अल्पेच्छ होता है। (दजिचू पृ. ३२०) • अप्पिच्छो णाम जो अस्स आहारो ताओ आहारपमाणाओ कणमाहारेमाणो अप्पिच्छो भवति । अपनी आहार की मात्रा से जो कम आहार लेता है, वह अल्पच्छ कहलाता हैं। (दर्शाजचू पृ. २८२) अबुह-अज्ञानी । अबुहो णाम अप्रयुद्धन्द्रियो बालः। जिसका इन्द्रिय ज्ञान विकल है, जो बाल है, वह अबुध है। (सूचू १ पृ. ३७) अब्भक्खाण-अभ्याख्यान । अब्भक्खाणं असम्भूताभिणिवेसो। अयथार्थ अभिनिवेश अभ्याख्यान कहलाता है। (सूयू १ पृ. २४७) अब्भुट्ठाण-अभ्युत्थान । अब्भुट्ठार्ण गाम जं अन्भुवाणरिहस्स आगयस्स अभिमुहं उट्ठाण। अभ्युत्थान के योग्य व्यक्ति के आने पर उसके सम्मुख खड़ा होना अभ्युत्थान है। (दजिवू पृ. २९५) अभिगम-विनयप्रतिपत्ति । अभिगमो नाम साधूणमायरियाणं जा विणयपडिवत्ती सो अभिगमो भण्णइ । साधुओं तथा आचार्य के प्रति की जाने वाली विनवतिपत्ति को अभिगम कहा जाता है। (दजिवू पृ. ३२४) अभिणिध्वुड-अभिनित । अभिनिर्वतो लोभादिजयामिरातुरः।। अभिनित वह है, जो कषाय-विजय से अनातुर हो गया है। (सूटी पृ. ११७) अभिधारणा-अभिधारणा। प्रस्विनो पहिरवतिष्ठते वावागमनमार्गे साऽभिधारणा। पसीने से लथपथ हो जाने पर बाहर वायु के आगमन मार्ग में जाकर बैठना अभिधारणा है ! (आटो पृ. ५० अभिहड-अभिसत । अभिहडं जं अभिमुहमाणीतं उवस्सए आणेऊण दिण्ण। सम्मुख लाकर उपाश्रय में दी जाने वाली भिक्षा अभिहत भिक्षा है। (दशअचू पृ. ६० . अयल-अचल मचलोत्ति थिरो नाणादिसु थिरचित्तो, ण य भज्जति अरतिरतीहि अणुलोमेहि पहिलो य उवसग्गेहि।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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