________________
६२८
नियुक्तिपंचक
जिसको देखने से एवं जिसके साथ बातचीत करने से अप्रीति उत्पन्न होती है, वह अचियत्त-अप्रीतिकर है।
(उशांटी.प, ३४६) • अणिट्ठो पवेसो जस्स सो अचियत्तो
जिसका आना अनिष्टकर लगता है, वह अचियत्त-अप्रीतिकर हैं। (दशअचू. पृ. १०४) अच्चि-अर्चि। दीवसिहासिहरादि अच्ची। दीपशिखा के अग्रभाग को अर्चि कहते हैं।
(दशअचू.पृ. ८९) • दासप्रतिबद्धो ज्वालाविशेषोऽर्चिः। दाह्य वस्तु से प्रतिबद्ध ञ्चाला-विशेष अर्चि कहलाती है। (आटी.पृ. ३३) • अच्ची नाम आगासाणुगयापरिच्छिन्ना अग्गिसिहा। आकाश की ओर ऊपर उठने वाली अपरिच्छिन्न अग्निशिखा अर्चि कहलाती है।
(दशजिचू,पृ. १५६) अच्छिन्नसंधना-अच्छिन्नसंधना । पसत्थेसु भावेसु बट्टमाणो अपुव्वं भावं संधेइ एसावि अच्छिन्नसंधणा।
प्रशस्त भावों में वर्तमान व्यक्ति जिन अपूर्व भावों का संधान करता है, वह अच्छिन्नसंधना कहलाती है।
(आचू. पृ. ४७) अण्झप्प-अध्यात्म। अप्माणमधिकरेऊण जं भवति तं अण्झप्प।
आत्मा को लक्ष्य कर जो लिया जाता है. वह गारा है। (रणयन पृ. २४१) अण्झयण-अध्ययन। अण्झप्पस्साणयणं, कम्माण अवचओ उपचियाणं ।
अणुवचओ य नवाणं, तम्हा अज्झयणमिच्छति ।। अधिगम्मति व अत्या, इमेण अधिगं च नयणमिच्छति।
अधिगं च साहु गच्छति, तम्हा अण्झयणमिच्छति ।। अध्ययन का अर्थ है-अध्यात्म का आनयन। उपचित (संचित) कर्मों का अपचय और नए कमो का अनपचय, यह सारा अध्यात्म का आनयन है। यह अध्ययन हैं। जिससे अर्थ-बोध होता है, वह अधिगम अध्ययन है अथवा जिससे अर्थनीधि में अधिक गति होती है, वह अध्ययन है। इससे मुनि संयम के प्रति तीव्र प्रयत्न करता है, इसलिए (भव्य जन) अध्ययन की इच्छा करते हैं।
(दशनि.२६,२७, उनि.६,७) अट्ट आर्त । अट्टो णाम अट्टण्झाणीवगतो रागदोससहितो।
___ आर्तध्यान से युक्त तथा राग-द्वेष से प्रभावित व्यक्ति आर्त कहलाता है। (आचू.पृ. ८७) अट्ट-आर्तध्यान । ऋतं-दु:खं तन्निमित्तं दुरण्शवसातो अटै। दु:ख का निमित्तभूत दुर् अध्यवसाय आर्तध्यान है।
(दशअचू.पृ. १६) अणंतजीव-अनंत (काय) जीव।
चनागं भज्जमाणस्स, गंठी चुपणषणो भवे । पुढविसरिसभेदेणं, अर्णतजीवं वियाणाहि ॥ गूढसिराग पत्तै, सच्छोरं जंध होइ निच्छीरं । जे पुण पणष्ट्रसंघिय, अणंतजीवं वियाणाहि ।।