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________________ पारिष्ट ६ : कथाएं पितः के साथ प्रजित होकर तापस बन गया और तापस क्रियाओं का यथावत् पालन करने लगा। एक दिन एक तापम ने आश्रम में घोषणा की कि कल अनाकुट्टी होगी इसलिए आज ही समिधा कुग्नुम, कन्द, फल एल आदि ले आएं। यह सुनकर धर्मरुचि तापस ने अपने पिता तापस से पूछा-'तात : यह अनाकुटी क्या है? पिता तापस ने कहा-'अमावस्त्या आदि पन दिनों में कन्द फल आदि का छंदन नहीं करना चाहिए। यह हिंसायुक्त क्रिया है।' यह सुनकर धर्मरुचि तापस ने सोचा कि यदि सदा के लिए अनाकुट्टी की जाए तो वह श्रेष्ठ है। एक बार अमावस्या के दिन आश्रम के निकटवर्ती मार्ग से विहार करते हुए साधुओं को उसने देखा। उनको देखकर धर्मरचि नाग ने एला...' मा उपज अप अगः नहीं है? आज आप अटवी में क्यों जा रहे हैं? मुनि बोले-'हमारे तो यावज्जीवन ही अनाकुट्टी है।' यह कहकर मुनि आगे प्रस्थान कर गए। तापस धर्मरुवि ईहा, अपोह और विमर्श में निमग्न हो गया। चिंतन करतेकरते उसे जातिरमृति ज्ञान उत्पन्न हो गया। उसने जान लिया कि पूर्वजन्म में वह पापण्य का पालन कर देवलोक में सखों का अनभव कर यहां उत्पन्न हुआ है। इस प्रकार उसने अपने जातिस्मरण ज्ञान से विशिष्ट दिशा से आगमन की बात जान ली। २. जातिस्मरण (ख) गणधर गौतम ने भगवान से पूछा-'मुझे केवलज्ञान की प्राप्ति क्यों नहीं होती?' भगवान ने कहा-'तुम्हारा मुझ पर अतीव स्नेह है, इसलिए मैंनल्य का लाभ नहीं हो रहा है।' गौतम ने पूछा-'यह स्नेह क्यों है?' भगवान ने कहा-'गौतम अनेक जन्म से हम दोनों का संबंध रहा है, यही स्नेह का कारण है।' गौतम को तब विशिष्ट दिशा में आगमन का ज्ञान हो गया। यह तीर्थंकर के कथन से होने वाला जान हैं? ३. जातिस्मरण (ग) मल्लिकुमारी ने विवाह के लिए समागत छह राजपुत्रों को जन्मान्तर का वृत्तान्त सुनाते हुए कहा-'हम सभी एक साथ प्रजित हुए थे और एक साथ जयन्त विमान देवलोक में सुखानुभव किया था।' यह सुनकर वे छहों प्रतियुद्ध हो गए और उन्हें विशिष्ट दिशा से आगमन का विज्ञान प्राप्त हो गया। यह अन्य श्रवण से उत्पन्न ज्ञान का उदाहरण है।' ४. दृष्टि का महत्व उदयसेन राजा के वीरसेन और सूरसेन नामक दो पुत्र थे। वीरसेन संभा था। उसने गान्धर्व (गायन) आदि कलाएं सीख लीं। सूरसेन धनुर्विद्या आदि कलाओं में निपुण हो गया तथा लोक में उसकी प्रसिद्धि हो गयी : यह सुनकर वीरसेन ने राजा को निवेदन किया कि मैं भी धनुर्विद्या का अभ्यास करूंगा। राजा ने उसके आग्रह को देखकर धनुर्विद्या सीखने की आज्ञा दे दी। उपयुक्त उपाध्याय के उपदेश तथा अपनी प्रज्ञा के अतिशय से वह शब्दवेधी धनुर्धर बन गया। युवावस्था प्राप्त होने पर उसने राजा से शत्रु--सेना के साथ युद्ध की आज्ञा मांगी। राजा ने अनुमति दे दी। वह शत्रु १-३.आनि.६४, आदी.पृ. १४
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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