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________________ क्षीण नियुक्तिपंचक शिवशर्मकृत्त कर्मग्रंथ चन्द्रर्षिकृत पंचसंग्रह देवेन्द्रसूरिकृत कर्मग्रंथ ८. क्षपक क्षपक क्षपक ९. क्षीणमोह क्षीणमोह १८. द्विविध जिन गायोगी केतनी एयोगी (केवली) (सयोगी एवं अयोगी) अयोगी केवली अयोगी (केवली) (ई. सन् पांचवीं शती) ई. सन् आठवीं शती) (विक्रम की पांचवीं शती) दिगम्बर परम्परा स्वामीकुमारकृत कार्तिकेयानुप्रेक्षा षट्खंडागम, गोम्मटसार (जीवकाण्ड) १. मिथ्यादृष्टि १. सम्यक्त्व-उत्पत्ति २. सद्वृष्टि २ श्रावक ३. अणुव्रतधारी ३. विरत ४. ज्ञानी महाव्रती ४. अनंतकशि ५ प्रथमकषायचतुष्कवियोजक ५. दर्शनमोहक्षपक ६. दर्शनमोहत्रिक क्षपक ६. कवायउपशमक ७ उपशामक ७. उपशांत ८. क्षपक ८ क्षपक ९. क्षीणमोह ९. क्षीणमोह १०. सणेगी (नाथ) १०. जिन ११. अयोगी (नाथ) __ (ई. सन् पांचवीं शती) (विक्रम की पांचवीं शती) उमास्वाति के बाद लगभग सभी आचार्यों ने जिन के सयोगी और अयोगी-ये दो भेद करके ग्यारह अवस्थाओं का उल्लेख किया है। स्वामीकुमारकृत कार्तिकेयानुप्रेक्षा में उपशांत अवस्था का उल्लेख नहीं है। उन्होंने सम्यग्दृष्टि से पूर्व की अवस्था मिथ्यादृष्टि को माना है तथा जिन के स्थान पर नाथ का प्रयोग करके उसके सयोगी और अयोगी-ये दो भेद किए हैं। कार्तिकेयानुप्रेक्षा के टीकाकार शुभचन्द्र ने उपशांत अवस्था की व्याख्या की है। १. कार्तिकेयानुप्रेक्षा ९/१०६-१८; मिच्छादो सद्धिी, असंलगुणकन्मनिज्जरा होदि। तत्तो अणुबरधारी, ततो य महत्वई पागी।। पढमकसायरउण्ह, विजोजओ तह य खवणसीलो य। दंसणमोहतियस्स य तत्तो उवसमग चत्तारि। खवगः ६ खीणभोहो, सलोइणाहो तहा अजोईया। एदे उवरि उवरिं, असंक्षगुणकम्भणिज्जरया।। २. (क) षट्खंडागम, वेदनाखंड, गा. ७, ८ पृ. ६२७ । (ख) गोम्मटसार, जीवकाण्ड, गा. ६६, ६७; सम्मत्तुप्पत्तीये, सावयविरदे अणतकम्मसे। दसणमोहक्खबगे, कसायउवसामगे य उवसंते।। लबगे य सीगमोहे, जिणेसु दत्वा असंखगुणिदकमा । तश्चिवरीया काला, संखेवकमा होति।। ३. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, पृ. ५२।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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