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________________ नियुक्तिपंचक आगमन कैसे हो सकता है? यदि मोर का आना संभव भी हो तो दृष्टि से अच्छी तरह देखना चाहिए।' राजा ने कहा-'सत्य है। मैं मर्ख इं. और आमंदो का चौथा पैर हूं।' राजा उसके वचनविन्यास और दह के लावण्य को देखकर उस पर अनुरक्त हो गया। कनकमंजरी भी पिता को भोजन खिलाकर अपने घर चली गयी। राजा ने अपने सुगुप्त नामक मंत्री के माध्यम से चित्रांगक से कनकमंजरी को मांगा। चित्रांगक ने कहा-'हम दरिद्र हैं अत: विवाह के अवसर पर राजा का सत्कार आदि कैसे कर सकते हैं?' मंत्री ने राजा को आकर सारी बात कहीं। राजा ने धन, धान्य और हिरण्य से चित्रांगक का भवन भर दिया। प्रशस्त तिथि और मुहूर्त में वैभव के साथ राजा के साथ कनकमंजरी का विवाह हो गया। राजा ने उसके महल में अनेक दास-दासियों को रख दिया। राजा जितशत्रु के अनेक रानियां थी अतः एक-एक रानी अपने क्रम के अनुसार राजा के शयनगृह में जाती थीं। उस दिन कनकमंजरी को बुलाया गया। वह अलंकारों से विभूषित होकर मदनिका दासी के साथ वहां गई । वह आसन पर बैठ गई। इसी बीच राजा वहां आ गया। राजा को देखते ही वह विनय-पूर्वक उठी। राजा शय्या पर बैठ गया। इससे पूर्व ही कनकमंजरी ने मदनिका को कह दिया कि राजा के बैठने पर मुझे आख्यानक सुनाने के लिए कहना जिससे राजा भी सुन सके। तब मदनिका ने अवसर देखकर कहा-'स्वामिनी ! जब तक राजा सो न जाए तब तक एक कथा सुना दो।' कनकमंजरी ने कहा-'मदनिका! जब राजा नोंद में सो जाएगा तब कथा कहूंगी।' राजा ने सोचा यह कैसी कथा कहेगी मैं भी इसकी कथा सुनूंगा अतः वह कपट-नींद में सो गया। मदनिका ने कहा-'स्वामिनी ! राजा सो गया है अतः अब आख्यानक सुनाओ।' कनकमंजरी ने कथा सुनाना प्रारम्भ किया-'बसंतपर नगर में वरुण नामक सेठ रहता था। उसने एक हाथ प्रमाण पत्थर का मंदिर बनाया। उसमें चार हाथ प्रमाण देवता की मूर्ति बनवाई।' मदनिका ने कहा-स्वामिनी ! एक हाथ प्रमाण देवकुल में चार हाथ का देव कैसे समाएगा? कनकमंजरी ने कहा-'अभी राजा निद्राधीन है अतः कल कहूंगी।' 'ऐसा ही हो' कहकर मनिका अपने घर चली गयी। राजा को कौतहल उत्पन्न हो गया. ऐसा कैसे हआ? वह सो गई। दूसरे दिन रात्रि को राजा ने कनकमंजरी को पुनः बुलाया। उस दिन भी मदनिका ने कहा-'स्वामिनी ! अब आधे कहे हुए कथानक को पूरा करो।' कनकमंजरी ने कहा-'वह देव चतुर्भुज था। उसके शरीर का प्रमाण इतना नहीं था। इतना ही आख्यानक है।' मदनिका ने कहा-'अन्य कोई आख्यानक कहें।' कनकमंजरी ने कहा-'हले ! एक बड़ी अटवी थी। उसके अन्दर विस्तृत शाखा-प्रशाखा वाला एक लाल अशोक का वृक्ष था। उसके छाया नहीं थी।' मदनिका ने कहा-'इतने बड़े वृक्ष की छाया कैसे नहीं थी'? कनकमंजरी ने कहा-'आगे की कथा कल कहूंगी। इस समय मैं नींद के पराधीन हो रही हूँ।' तीसरे दिन भी कौतुक वश राजा ने उसी को बुलाया। मदनिका के पूछने पर उसने कहा--उस पादप की अध: शाखा थी अर्थात् नीचे छाया पड़ती थी ऊपर नहीं। अन्य कथा पूछने पर उसने कहना प्रारम्भ किया- एक सन्निवेश में एक ग्राम-मुखिया था। उसके पास एक बड़ा ऊंट था। वह स्वच्छंद विचरण करता था। एक दिन चरते हुए उसने पत्र, पुष्प एवं फल से समृद्ध बबूल का वृक्ष देखा। वह ऊंट उसके सामने अपनी गर्दन फैलाने लगा, लेकिन
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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