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________________ ५०६ नियुक्तिपंचक प्रहर में मुनि चौराहे पर प्रतिमा में स्थित थे। उस समय गायों को चुराकर कोई व्यक्ति उधर से गुजरा। गायों को खोजते हुए व्यक्ति वहां आए। उन्होंने मुनि को देखा । वहां से दो मार्ग जाते थे। वे मार्ग नहीं जानते थे। उन्होंने मुनि से पूछा-'चोर किस रास्ते से गए हैं?' मुनि ने प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दिया। उत्तर न पाकर वे कुपित हो गए। वे मुनि के सिर पर मिट्टी की पाल बांधकर उसमें जलती हुई चिता के अंगारों को रख कर चले गए। मुनि ने समभाव पूर्वक उस परीषह को सहन किया। १३. शय्या परीषह कौशाम्बी नगरी में यज्ञदत्त नामक ब्राह्मण था। उसके सोमदत्त और सोमदेव नामक दो पुत्र थे। दोनों भाई संसार के कामभोगों से विरक्त होकर सोमभूति आचार्य के पास दीक्षित हो गए। वे बहुश्रुत और अनेक आगमों के ज्ञाता बन गए। एक बार वे दोनों ज्ञाति लोगों की बस्ती में गए। उज्जयिनी नगरी में उनके माता-पिता रहते थे। एक बार वे वहां भिक्षा के लिए गए। वहां के ब्राह्मण मद्यपान करते थे। उन्होंने अन्य द्रव्य में मदिरा मिलाकर उन मुनियों को भिक्षा दी। अजानकारी में पानी समझकर वह शराब उन्होंने पी ली। शराब का नशा उन पर छाने लगा। बाद में उन्होंने चिंतन किया--'अहो! यह हमने अकृत्य का आसेवन किया है। हमने बहुत बड़ा प्रमाद किया है अत: प्रायश्चित्त स्वरूप अब भक्त प्रत्याख्यान करना ही श्रेष्ठ होगा।' दोनों ने नदी के किनारे एक काष्ठ पर भक्त प्रत्याख्यान कर प्रायोपगमन संथारा स्वीकार कर लिया। वहां अकाल में ही वर्षा प्रारम्भ हो गयी। नदी में बाढ़ आने से वे पानी में बहते हुए समुद्र में चले गए। कष्ट आने पर वे मानसिक रूप से भी विचलित नहीं हुए। दोनों मुनियों ने सम्यक् प्रकार से शय्या परीषह को सहन किया। १४. आक्रोश परीषह (अर्जुनमाली) राजगृह नगरी में अर्जुन नामक माली रहता था। उसकी पत्नी का नाम स्कन्दश्री था। राजगृह नगर के बाहर मुद्गरपाणि यक्ष का मंदिर था। अर्जुनमाली को यक्ष पर प्रगाढ़ आस्था थी। वह कुलदेवता के रूप में उसकी पूजा करता था। माली के उद्यान के रास्ते में हो यक्ष का मंदिर था। अर्जुन प्रतिदिन ताजे फूल लाकर यक्ष की पूजा करने जाया करता था। एक दिन स्कन्द श्री अपने पति को भोजन देने गयी। आते समय फूलों को लेकर वह घर जा रही थी। रास्ते में मंदिर में छह कामी पुरुषों ने स्कन्दश्री को देखा। वे उसके रूप और लावण्य पर मुग्ध हो गए। उन्होंने सोचा, यह भोग भोगने के लिए उपयुक्त है, ऐसा सोचकर उसे पकड़ लिया और यक्ष की मूर्ति के सामने ही उसके साथ भोग भोगने लगे। कुछ समय बाद अर्जुनमाली प्रतिदिन की भांति ताजे फूलों को लेकर यक्ष की अर्चना करने आया। अपने पति को देखकर उसने कहा-'मेरा पति आ रहा है। क्या तुम मुझे छोड़ दोगे?' कामी पुरुषों ने उसके मानसिक अभिप्राय को जानकर कहा-'हम अभी उसको रस्सी से बांध देंगे। तुम्हें डरने की कोई आवश्यकता नहीं है।' उन लोगों ने अर्जुनमाली को रस्सी से बांध दिया। उसके सामने १. उनि.१०८, उशाटी.प. १०९, ११०, उसुटी.प. ३३। २. उनि,१०९, ११० उशांटी.प. १११, उसुटी.प. ३४ ।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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