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________________ ४९२ नियुक्तिपंचक मुनि अर्हन्नक की खोज की लेकिन मुनि का कहीं पता नहीं चला क्योंकि वह गृहस्थ हो गया था। मुनि की माता साध्वी भट्टा पुत्र के शोक से व्याकुल हो गयी। वह अर्हन्नक- अर्हन्नक का विलाप करती हुई नगर के तिराहे-चौराहे में भ्रमण करने लगी। वह किसी भी व्यक्ति को देखती तो सबसे यही पूछती-'क्या तुमने अर्हन्नक को कहीं देखा है?' इस प्रकार विलाप करती हुई वह पागल की भांति इधर-उधर भ्रमण करने लगी। एक बार उसके पुत्र अर्हन्नक ने गवाक्ष से अपनी माता को देखा। वह उसी समय नीचे उत्तरा और माता के चरणों में गिर पड़ा। वह बोला-'आपके कुल में कलंक लगाने वाला मैं आपका पुत्र अर्हन्नक हूं।' पुत्र को देखकर वह स्वस्थ हो गई। उसका चित्त शांत हो गया। उसने कहा-'पुत्र ! अब तुम पुनः दीक्षित हो जाओ। इस प्रकार दुर्गति में पड़कर जीवन बर्बाद मत करो। पुत्र ने कहा-'मां ! मैं अब संयम-पालन करने में असमर्थ हूं, परन्तु अनशन कर सकता हूं।' मां ने स्वीकृति देते हुए कहा-'असंयमो जीवन से अनशन करना अच्छा है। तुम असंयत होकर संसार-अटवी में परिभ्रमण करने वाले मत बनो।' तब अहंन्नक पादोपगमन अनशन स्वीकार कर एक तप्त शिला पर सो गया। मुहूर्त भर में उसका सुकुमार शरीर गर्मी से सूख गया। पहले अहंन्नक ने उष्ण परीषह को सहन नहीं किया, तत्पश्चात् उसने उसे समतापूर्वक सहन किया। ६. देशमशक परीषह ___ चम्पा नगरी में जितशत्रु राजा राज्य करता था। उसके युवराज का नाम सुमनभद्र था। धर्मघोष आचार्य के पास धर्म सुनकर वह कामभोगों से विरक्त होकर प्रवजित हो गया। युवराज सुमनभद्र ने दीक्षित होकर सूत्रों का अध्ययन किया और फिर दृढ़ मनोबल से एकलविहार प्रतिमा स्वीकार कर ली। एक बार वह अटवी में विहार कर रहा था। शरद ऋतु का समय था। वह अटवी में ही कायोत्सर्ग में स्थित हो गया। रात्रि में मच्छरों का उपद्रव रहा। सारी रात मच्छर काटते रहे पर मुनि ने उनका निवारण नहीं किया। मच्छरों ने सारा रक्त चूस लिया। उसने मच्छर-दंश की पीड़ा को समभावपूर्वक सहा और उसी रात दिवंगत हो गया। ७. अचेल परीषह दशपुर नगर में सोमदेव नामक ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम रुद्रसोमा था। उसके दो पुत्र थे-आर्यरक्षित और फल्गुरक्षित । आर्यरक्षित पिता के कथनानुसार अध्ययन करने लगा। जब उसने देखा कि घर में अध्ययन करना संभव नहीं है, तब वह पाटलिपुत्र नगर में चला गया । उसने सांगोपांग चारों वेद पढ़े। जब उसका पारायण सम्पन्न हुआ तब वह शाखापारक विद्वान् बन गया। चौदह विद्यास्थानों को ग्रहण कर वह दशपुर नगर वापिस लौट आया। उसके पिता राजकुल के सेवक थे। आर्यरक्षित ने अपने आगमन की सूचना राजा को दे दी। राजा ने समस्त नगर को वजाओं से सजाया। राजा स्वयं उसकी अगवानी करने गया। उसको सत्कारित-सम्मानित किया और पारितोषिक दिया। नगरवासियों ने उसका अभिनंदन किया। वह हाथी पर आरूढ़ होकर अपने घर पहुंचा। वहां १. उनि.९३, उशाटी.प. ९०,९१ ठसुटी. प. २१॥ २ उनि,९४, उशांटी.प, ९२ उसुटी.ए. २२ ।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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