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परिशिद४
देशो शब्द
मणुक चावल की एक जाति । (दशनि २२९) अस–खण्डित ।
(दनि १४) मह-दर्पण। (दनि ९६) पल्लय--छोटा।
(उनि २३० आग-दर्पण। (दशनि १३३) बह--कर्म ।
(दनि १२४) अडा–काल ।
(दशनि २५१) गंगी दुष्ट घोड़ा, अविनीत बैल। (उनि ६५) अकोष-वनस्पति विशेष । (उनि ३९०) गली-दुष्ट घोड़ा, अविनीतल। (उनि ६५) अम्मा-मां, माता। (उनि ४१४) गोष-बल ।
(उनि ६५, दनि १२) अवय--अनंतकाय वनस्पति । (आनि १४१) चंपणिया--अश्चिस्थान, मल- (उनि १०६) अवहेग- आंधा शीशी रोग । (उनि १५०)
विसर्जन भूमि उंबर-चूहा।
(दशनि १३३) बजार--बढ़ा-चढ़ाकर कहना। (दशनि १८७) उहकारि--अबहेलना करने वाला।
चकुलग-खण्ड-खण्ड किया हुआ। (सूनि ६९)
(उनि १३९) विक्सल कदम, कीचड़ । (दनि ६०) उत्तश्य-उत्तेजित। (दशनि १८५) चिस्मिल्ल-कीचड़ ।
(दनि ७४) मोसा-ओस । (आनि १०८) बोयाल—चवालीस ।
(उनि १७१) कंगु-धान्य विशेष।
(दशनि २२९) बोल्लग-भोजन, क्रम से घर-घर करप- अनन्तकाय वनस्पति । (आनि १४१) में किया जाने वाला भोजन । काइय-मूत्र। (दनि ७२)
(उनि १६१) कालेज्या हृदय का मांस बण्ड। (मूनि ६१) जल्ल--मेल ।
(उनि ११८) किल्य-वर्षा काल में घड़े आदि में ।
उगल पत्थर के टुकड़े। (दनि ८) होने वाली एक प्रकार की काई (आनि १४१) तुक्कगहकना, तक्कन । (दनि ६३) कुलंग - बांस का झुरमुट । (उनि ३४२) विकिप-वृषभ की गर्जना। (उनि २६०) कुडिय–चुराई हुई वस्तु की खोज
तलवर- नगररक्षक, कोतवाल। (उनि ३०५) करने वाला।
(उनि १०८) तिपुरग-धान्य विशेष । (दशनि २३०) कुहारि-कुल्हाड़ी, फरसा । (आनि १४१) लि-रेखा।
(दनि १४) कोस—समुद्र, सागर । (आनि ११३) यग्ग--दम्पति ।।
(सनि ३६०) बदावागिय- धनी, समृद्ध । (दनि ९९) धणिय-अधिक ।
(दनि ११५) बलुंक- अविनीत बल, दुष्ट । (उनि ४८२. घणीय- अत्यन्त गाड़। (दशनि ६८) आनि २५५) धृत-कर्म ।
(दनि १२४) 1- छोटा शिष्य।
__उनि ९० नालिएर-नारियल । (आनि १३३) खाग--छोटा शिष्म। (आनि २२८) मासीर-शिकार !
(उनि ३८८) पाप-छोटा। (उनि ११) पगण-कर्म ।
(दनि १२४)