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________________ नियुक्तिपंचक ६०. धर्म में जो दृहमति वाला होता है, वहीं शूर है, सात्त्विक है और वीर है। धर्म के प्रति निरुत्साही व्यक्ति अत्यधिक शक्तिशाली होने पर भी शूर नहीं होता। ६१. स्त्री-संसर्ग से होने वाले जो दोष पुरुषों के लिए कहे गए हैं, वे ही दोष पुरुष-संसर्ग से स्त्रियों के लिए कथित हैं । इसलिए, विरागमार्ग में प्रवृत्त स्त्रियों के लिए अप्रमाद ही श्रेयस्कर पांचवा अध्ययन : नरक-विभक्ति ६२,६३. नरक शब्द के छह निक्षेप है--नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव । द्रव्यनरक--जो इसी जन्म में पापकारी प्रवृत्तियों में संलग्न हैं, वे अथवा नरक सदृश यातना के स्थान । क्षेत्रनरक-काल, महाकाल आदि नरकावास । कालनरक-नारकों की काल स्थिति । भावनरक---जो जीव नरकायुष्क का अनुभव करते है अथवा नरक प्रायोग्य कर्मोदय । नरक के दुःखों को सुनकर तरश्चरण-संयमानुष्ठान में प्रयत्नशील रहना चाहिए। ६४. विभक्ति शब्द के छह निक्षेप है-नाम, पिना, कान ६५. नारकीय प्राणी नरकावासों में तीन वेदना को उत्पन्न करने वाले पृथ्वी के स्पर्श का अनुभव करते हैं । वह वेदना दूसरों के द्वारा अचिकित्स्य होती है। पहले तीन नरकवासों में अत्राण नैरमिक परमाधार्मिक देवों द्वारा कृत वध-हनन का अनुभव करते हैं। शेष चार नरकावासों में नरयिक क्षेत्र-विपाकी और परस्पर उदीरित वेदना का अनुभव करते हैं। ६६,६७. पन्द्रह परमाधार्मिक' देवों के नाम इस प्रकार हैं--- (१) अंब (६) उपरौद्र (११) कुम्भी (२) अम्बरिसी (७) काल (१२) वालुका (३) श्याम (१३) वैतरणी (४) शमल (९) असि (१४) खरस्वर (५) रोद्र (१०) असिपरधनु (१५) महाघोष । ६८. अंग परमाधामिक देव नैरयिकों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर दौड़ाते हैं, इधरउधर घुमाते हैं, उनका हनन करते हैं, शूलों में पिरोते हैं, गला पकड़कर भूमि पर औंधे मुंह पटकते हैं, आकाश में उछालकर नीचे गिराते हैं। ६९. मुद्गरों से आहत, खड्ग आदि से उपहत तथा मूच्छित नारकियों को अबरिषी परमाधामिक देव करवत से चीरकर या टुकड़े-टुकड़े कर छिन्न-भिन्न करते हैं। ७०. श्याम परमाधार्मिक देव तीव्र असातावेदनीय कर्म का अनुभव करने वाले नारकियों के अंगोपांग का छेधन करते हैं, पहाड़ से नीचे बचभूमि में गिराते हैं, शूल में पिरोकर व्यथित १. पवनपति देवों में अत्यंत अधम देवों को सुराधविशेषाः परमाधार्मिकाः । परमाधार्मिक देव.कहा जाता है-भवनपल्य • (सूटी. पृ.८३)
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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