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सूत्रकृतांग नियुक्ति १४५. जो जीवो भविओ खलु, 'उववज्जिउकामो पोंडरीएसु' ।
सो दवपोंडरीओ, भावम्मि 'य जाणओ' भणिओ ।। 'एगभविए य बढाउएँ य अभिमुहो य' नाम-गोए य ।
एते तिन्नि वि* देसा, दवम्मि य' पोंडरीयस्स ।। १४७. 'तेरिच्छिगा मणुस्सा, देवमणा'' चेव होंति जे पवरा ।
ते होंति पोंडरीया, सेसा पुण 'कंडरीगा हु ।। १४८. 'जलचर-थलचर-खहचारिएसु जे होंति पवरकता य' ।
जे य सभावाणुमता, ते होंती" पोंडरोगा उ ।। अरहत" धक्कवट्टी, चारण-विज्जाहरा दसारा य ।
जे अन्ने इडिमंता, ते होंति पोंडरीया उ॥ १५०. भवणति-वाणमंतर-'जोतिस-वेमाणियाण देवाण'१२ ।
से 'रेरित वर खलु, ते होती पोंडरीया उ॥ १५१. कंसाणं दूसाणं, मणि-'मोतिय-सिल-पवालमादीणं' ।
'जे य अचित्ता पवरा'", ते होंति पोंडरीया उ॥ १५२. अश्चित्तमोसगेसु, दम्वेसं जे य होंति पवरा उ ।
से होति पोंडरीया, सेसा पुण कंडरीया " ।। १५३. 'जाइं खेत्ताई" खलु, सुहाणुभावाई होति लोगम्मि ।
देवकुरुमादियाई, ताई खेत्ताई१६ पवराई।। १. वजिकामो य पुंडरीयम्मि (टी) १२. जोतिसदासी विमाणवासी य (स) । २. विजाणओ (टी)।
१३. पयरा देवा (स)। ३. एगमबिय वाउय अभिमुहा य (अ), अभि- १४. मुत्तिय-सिलप्पबाल० (सद)। - मुहिय (टी)।
१५. जे तेसि पधरा खलु (ब,द,क), अच्चित्ताजे य
पवरा (स)।
१६. यह गाया प्राय: सभी हस्त आदर्शों में मिलती ६. तेरिन्छमणुस्साणं देवगणाणं व (अ)।
है। मुद्रित टीका को क्रम संख्या में यह गाथा ७. रीया उ (अ)।
नहीं है लेकिन टिप्पण में यह गाथा दी जलयर यलयर धयरा, जे पचरा चेव होंति
है। टीकाकार ने 'मिधद्रव्यपौंडरीकंतु तीर्थकप्ता य(टी) खयरा जेय पवरा जेय होति कृष्टचक्रबदिय एवं प्रधान फटक"....." । कता य (स)।
उल्लेख किया है। यह गाथा प्रासंगिक है। ५. समावेऽणु० (म,टी), सभाष अण. (स), हमने इसे निर्यक्ति-गाथा के क्रम में जोड़ा है। सभावोऽणु० (म)।
१७. जाणि खेत्ताणि (स). १०. होति (अ), छंद की दृष्टि से दीर्घ इकार है। १८. भागाणि (स), महाणभावाइं (4)। ११. अरिहंत (बद)।
१९. खेत्तेसु (ब,क)1