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________________ नियुक्ति साहित्य : एक पर्यवेक्षण १०. समाधि का प्रतिपादन । ११. सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्रात्मक मोक्षमार्ग का निरूपण। १२. क्रियावाद, अक्रियावाद आदि ३६३ तत्वों का निराकरण । १३. कुमार्ग का निरूपण। १४. शिष्यों के गुण और दोषों का कधन तथा नित्य गुरुकुलवास में रहने का उपदेश । १५ पूर्व उपन्यस्त आदानीय पद का संकलन । १६. पूर्वोक्त अध्ययनों में अभिहित सभी अर्थों का संक्षिप्त कथन । तत्त्वार्थ राजवार्तिक के अनुसार सूत्रकृतांग में ज्ञानविनय, प्रज्ञापना, कायाकल्प्य छेदोपस्थापना और व्यवहार धक्रिया का निरूपण किया गया है। आचार्य वीरसेन ने इसके अतिरिक्त स्वसमय और परसमय के प्रतिपादन का उल्लेख भी किया है। कषायपाहुड़ की चूर्णि के अनुसार सूत्रकृतांग में स्वसनय, परसमय, स्त्रीविलोकन, क्लीवता, अस्फुटत्व, मन की बात को स्पष्ट न कहना, काम का आवेश, बिलास, आस्फोलन सुख तथा पुरुष की इच्छा करना आदि स्त्री लक्षणों का प्ररूप ॥ है।' सूत्रकृतांग नियुक्ति नियुक्ति-रचना के कम में पांचवां स्थान सत्रकृतांग निथुक्ति का है। आकार में यह अत्यंत लघुकाय है। इसमें सूत्रकृतांग में आए शब्दों की व्याख्या न करके नियुक्तिकार ने अध्ययनगत शब्दों की व्याख्या अधिक की है। नियुक्ति के प्रारम्भ में सूत्रकृतांग ग्रंथ के नाम के आधार पर सूत्र एवं कृत. करपा शब्द की व्याख्या की गयी है। कालकरण की व्याख्या ज्योति की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है । इस नियुक्ति में मुख्य रूप से समय, उपसर्ग, स्त्री, पुरुष, नरक, स्तुति. पील, वीर्य, धर्म, समाधि, मार्ग आदि शब्दों कः निक्षेप के माध्यम से विशद विवेचन हुआ है। इसमें समय, वीर्य, मार्ग आदि शब्दों की व्याख्य’ अनेक आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक रहस्यों को प्रकट करने वाली है। सूत्रकृतांग के प्रथम अध्ययन में अनेक वादों का वर्णन है पर नियुक्तिकार ने पंचभूतवाद और अकारकवाद—इन दो वादों के खंडन में अपने हेतु प्रस्तुत किए हैं। पांचवें अध्ययन में पन्द्रह परमाधार्मिक देवों के कार्यों का वर्णन रोमांध पैदा करने वाल. है। द्वितीय श्रुतस्कंध के प्रथम पोंडरीक अध्ययन की नियुक्ति में संसार में विविध क्षेत्रों की सर्वश्रेष्ठ वस्तुओं की गणना करा दी गयी है। आहारपरिज्ञा नामक तीसरे अध्ययन की नियुक्ति में आहार-अनाहार से संबन्धित सैद्धान्तिक विवेचन हुआ है। नियुक्तिकार का शैलीगत वैशिष्ट्य है कि वे कथा का विस्तार नहीं करते लेकिन छठे अध्ययन में आर्द्रककुमार की विस्तृत कथा दी है। अंतिम अध्ययन की नियुक्ति में नालंदा में हुई गौतम और पाश्वपित्यीय श्रमणः उदक की चर्चा का संकेत है। दशाश्रुतस्कंध एवं उसकी नियुक्ति छेदसूत्रों में प्रथम स्थान दशाश्रुतस्कंध कः आता है। इनको छेदसूत्र क्यों कहा गया इस बारे में १. सूनि २४-२८ । २. तत्त्वार्य राजवार्तिक १/२० पृ. ७३ । ३ षटझंडागम धवला भाग १ पृ. ९९ । ४. कया. चू. भाग १ पृ. ११२ ।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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