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________________ आधारोग नियुक्ति ३१७ ३२६. ई- शब्द का निक्षेप छह प्रकार का है-नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव । ३२९. द्रव्यईयर्या के तीन प्रकार हैं-सचित्त, अचित्त और मिश्र । जिस क्षेत्र में जो ईर्या हो, वह क्षेत्र ईर्या है। जिस काल में जो ईर्या हो, वह कालईर्या है। ३३.. भावईया के दो प्रकार है-चरणईयां और संयमईर्या । संयमईयर्या सतरह प्रकार के संयम का अनुष्ठान है । चरणईर्या है-गमनईर्या । श्रमण का किस प्रकार का गमन निर्दोष और परिशुद्ध होता है ? यह एक प्रश्न है ।। ३३१. आलंबन-प्रयोजन, काल, मार्ग और पतमा--इनके सोलह विकल्प होते हैं। यह सोलह प्रकार का गमन है । इसमें जो परिशुद्ध होता है, बही प्रशस्त गमन होता है। ३३२. चार कारणों से जो गमन होता है, वह परिशुद्ध होता है। चार कारण है. (१) आलंबन प्रवचन, संघ, गच्छ, आचार्य आदि के प्रयोजन से, (२) काल-विहरणयोग्य अवसर, (३) मार्ग · जनता द्वारा क्षुण्ण मार्ग, (४) मतना- गमन में भावक्रिया युक्त होकर युगमात्र दृष्टि से चलना । अथवा अकाल में भी ग्लान आदि के प्रयोजन से सतनापूर्वक उपयुक्त मार्ग में गमन करना परिशुद्ध गमन है। ३३३, सभी उद्देशक ईर्या-विशोधि के कारक हैं । फिर भी प्रत्येक उद्देशक में कुछ विशेष है, वह मैं कहूंगा। ३३४,३३५. पहले उद्देशक में उपागमन-वर्षाकाल में एक स्थान पर रहना तथा शर ऋतु में निर्गम और मार्ग में पेतना का निरूपण है। दुसरे उद्देशक में नौका में मारूद व्यक्ति का छलन-प्रक्षेपण हलन-चलन तथा जंघा संतार-पानी में बरती जाने वाली यतना तथा नानाविध प्रश्नों के पूछे जाने पर साधु के कर्तव्य का निरूपण है। तीसरे उद्देशक में प्रदर्शनता (कोई नदी के पानी आदि के विषय में पूछता है तो जानते हुए भी नहीं बताना) तथा उपधि में अप्रतिबद्ध होना-धि के चुराए जाने पर शिकायत के लिए स्वजन तथा राजगृह-गमन का वर्जन करने का निर्देश है । (किमी को चुराए गए उपधि के विषय में कुछ न कहना।) ३३६. जैसे बाक्यशुद्धि अध्ययन में 'वाक्य' के निक्षेप किए थे वैसे ही भाषा शब्द के निक्षेप जानने चाहिए । जात प्राब्द के छह निक्षेप है-नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव । द्रग्यशात चार प्रकार का है-उत्पत्तिजात, पर्यवजात, अन्तरजात तथा ग्रहणजात ।' ३३७. भाषाजात अध्ययन के दोनों उद्देशक वचन-विशोधिकारक हैं । फिर भी दोनों में कुछ विशेष है । पहले उद्देशक में वचनविभक्ति का प्रतिपादन है। दूसरे उहे शक में क्रोध आदि की उत्पत्ति न हो-ऐसे वचन विवेक का निरूपण है । 1. विस्तृत व्याख्या के लिए देखे, आटी पृ० २५७ ।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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