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________________ ३१२ निर्युक्तिपंचक प्रतिषेध करने पर यदि दाता रुष्ट हो जाए तो उसे सिद्धान्तों के आधार पर सम्यक् रूप से समझाने का कथन है । ३. तीसरे उद्देशक में मुनि की अंगचेष्टा शरीर के प्रकंपन आदि को देखकर गृहस्थ के कुछ कहने या आशंकित होने पर यथार्थ कथन का निरूपण है । शेष पांच उद्देशकों में उपकरण तथा शरीर-परित्याग का निरूपण है । वह इस प्रकार है४. चौथे उद्देशक में वैहानस तथा गृद्धपृष्ठ मरण का निरूपण है । ४. पांचवें उद्देशक में ग्लानता तथा भक्तपरिज्ञा का प्रतिपादन है । ६. ७४ उद्देशक में एकत्व भावना तथा इंगिनी मरण का निरूपण है । ७. सातवें उद्देशक में भिक्षु प्रतिमाओं तथा प्रायोपगमन अनशन का प्रतिपादन है। ८. आठवें उद्देशक में अनुपूर्वीविहारी मुनियों के होने वाले भक्तपरिज्ञा, इंगिनीभरण तथा प्रायोपगमन अनशनों का निरूपण है । २७६. विमोक्ष शब्द के छह निक्षेप हैं- - नाम विमोक्ष, स्थापना विमोक्ष, द्रव्य विमोक्ष, क्षेत्र विमोक्ष, काल विमोक्ष तथा भाव विमोक्ष । २७७,२७८. द्रव्य विमोक्ष है- बेड़ी, सकिल आदि से छुटकारा क्षेत्र विमोक्ष है— जेल आदि से छूटना | काल विमोक्ष है— चैत्यमहिमा बादि उत्सव दिनों में हिंसा आदि न करने की घोषणा | भाव विमोक्ष के दो प्रकार हैं देशतः विमोक्ष- साधु सर्वतः विमोक्ष - सिद्ध । २७९. जीव का कर्मपुद्गलों के साथ संबंध होना बंध है। उससे वियुक्त होना मोक्ष है । २८०, जीव स्व-अर्जित कर्मों से बद्ध है। उन पूर्वबद्ध कर्मों का सर्वथा पृथक्करण होना ही मोक्ष है । २८१. भक्तपरिज्ञा, इंगिनीमरण तथा प्रायोपगमन- ये तीन प्रकार के अनशन हैं । जो चरम मरण अर्थात् इन तीनों में से किसी एक का आश्रय लेकर मरता है, वह भाव विमोक्ष है । २८२. पूर्वोक्त तीन प्रकार के मरणों के दो दो भेद हैं- सपराक्रम, अपराक्रम अथवा व्यावातिम, आनुपूर्विक ( अव्याघातिम) । सूत्रार्थ के ज्ञाता मुनि को समाधिमरण को स्वीकार करना चाहिए। (तीन प्रकार के अनशनों में से किसी एक को स्वीकार कर मृत्यु का वरण करना चाहिए ) २८३. सपराक्रम प्रायोपगमन मरण का आदेश - पारंपरिक उदाहरण है आयं वज्रस्वामी जिन्होंने सपराक्रम प्रायोपगमन अनशन स्वीकार किया था। २८४. अपराक्रम प्रायोपगमन मरण का पारंपरिक उदाहरण है-आर्य समुद्र का। उन्होंने अपराक्रम प्रायोपगमन अनशन स्वीकार किया था। २८५. व्याघातिम मरण यह सिंह आदि के व्याघात अथवा अन्य किसी व्यापात से होता है । इसका पारंपरिक उदाहरण है तोसलि बाचार्य का जो महिषी से हत होकर व्याघातिम मरण को प्राप्त हुए थे । १. आदेश – आचार्य की परंपरा से आगत अनुश्रुति / प्राचीन परंपरा । २. वे परि ६ कथा सं० ६ | ३. वही, कथा सं० ७ ॥ ४. वही, कथा सं० ८
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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