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________________ नियुक्तिपंचक २२८, प्रस्तुत ग्लोक में अल्लक की कथा कही गई है। रोहगुप्त मंत्री ने धर्मकथा न करते हुए भी गाथा के एक चरण से अप्रकट रूप में अन्यलिंगी तीथिकों की परीक्षा की । (राजा ने नगर में गाथा के एक चरण-'सकंजलं वा वयणं न व ति' को प्रचारित किया। उसकी पूर्ति के लिए विभिन्न तीथिक साधु राजा के समक्ष आए ।) २२९. (परिव्राजक ने गाथापूर्ति करते हुए कहा)-'मैं आज जब भिक्षा के लिए गया तब एक घर में विकसित कमल की भांति मनोहर नेत्रों वाली एक स्त्री का मुख देखा। उसे देख, मेरा चित्त चंपल हो गया । मैं भलीभांति नहीं जान सका कि उसका मुख कुंडलसहित है या नहीं ? २३०. (तापस ने कहा)-फलों का पानी लेने के लिए मैं एक घर में गया। वहां एक महिला आसन पर बैठी थी। उसे देख मेरा मन विक्षिप्त हो गया। मैं भलीभांति नहीं जान सका कि उसका मुख कुंडलसहित है या नहीं? २३१. (बौद्ध भिक्षु बोला) मालाविहार [उपमन] में मैंने एक उपासिका को देखा, जो स्वर्णाभरणों से सजी हुई थी। उसे देख मेरा मम चंचल हो गया। मैं भलीभांति नहीं जान सका कि उसका मुख कुंडलसहित है या नहीं ? २३२. जैन श्रमण ने कहा-मैं शान्त है, दान्त है, जितेन्द्रिय है। मेरा मन अध्यात्मयोग में लीन है, सब फिर इस घिन्तन' से क्या प्रयोजन कि स्त्री का मुख कुंडलसहित है या नहीं ?' २३३,२३४. मिट्टी के दो गोले हैं। एक आ गीला है और एक सूखा है। दोनों को भीत पर फेंका । जो गीला था वह भींत पर चिपक गया। जो सूखा था, यह भींत का स्पर्म कर नीचे गिर गया। इसी प्रकार दुर्बुद्धि मनुष्य काम-लालसा से पराभूत होकर संसार-पंक में डूब जाते हैं और जो विरक्त हैं, वे सूखे गोले की भांति कहीं चिपकते नहीं हैं। २३५, जैसे अग्नि पोले और अत्यंत सूले काठ को शीघ्र जला देती है वैसे ही सम्यग चारित्र में स्थित साधु भी कमों को शीघ्र जला डालता है, क्षीण कर देता है। पांचयो अध्ययन : लोकसार २३६-२३८. पांचवें अध्ययन के छह उद्देशक हैं। उनके अधिकार इस प्रकार हैं--- पहला उद्देशक-जो हिंसक, विषयारंभक और एकचर होता है, वह मुनि नहीं होता। दुसरा उद्देशक ---जो विरत है, वह मुनि होता है । अविरतवादी परिग्रही होता है। तीसरा उद्देशक--विरत मुनि ही अपरिग्रही तथा कामभोगों से निविण्ण होता है। चौथा उद्देशकः - अध्यक्त (भगीतार्थ) और एगचर मुनि के अपायों का दिग्दर्शन । पांचवां उद्देशक-लद की उपमा, तप-संयम-गुप्ति तथा निस्संगता का निरूपण | छठा उद्देशक-उन्मार्ग की अर्जना तथा राग-द्वेष के परित्याग का प्रतिपादन । २३९. प्रस्तुत अध्ययन का आदानपद के आधार पर 'अवंति' नाम है तथा इसका गौण नाम है लोकसार । लोक और सार पद के चार-चार निक्षेप हैं :-नाम, स्थापना, द्रष्य और भाव । १. देखें परि० ६ कथा सं०.५ ।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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