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________________ चिक्तिपंचक ११. योधस्थान-युद्धस्थल में स्वीकृत आलीन, प्रत्यासीह आदि अवस्थान । १२. अचलस्थान -सादिसपर्यवसान, सादिअपर्यवसान आदि । १३. गणनास्थान-एक, दो आदि शीर्षप्रहेलिका पर्यंत गणना । १४. संघानस्थान-संधान करने के स्थान । १५. भावस्थान-भाव विषयक संधान स्थान | १८६. शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंघ-ये पांच कामगुण हैं। इनके प्रति जिस प्राणी के कषाय प्रवर्तित होते हैं, यही संसार का मूलस्थान है। १८५. जैसे सभी वृक्षों के मूस भूमि में प्रतिष्ठित होते हैं, वैसे ही कर्मवृक्षों के मूल कवाय में प्रतिष्ठित हैं। १८८. कर्मवृक्ष आठ प्रकार के हैं। इन सबका मूल है-मोहनीय कर्म । कामगुणों का भी मूल है-मोहनीय कर्म और यही मोहनीय कर्म संसार का मूल है अर्थात् संसार का आद्य कारण है। १८९. मोह के दो प्रकार हैं- दर्श नमोह और चारित्रमोह । कामगुण चारित्रमोह के प्रकार हैं । प्रस्तुत सूत्र में उनका अधिकार है अर्थात उनका प्रतिपादन है । १९०. संसार का मूल है-कर्म । कर्म का मूल है- फषाय । कषाय स्वजन, प्रेष्य, अर्थधन आदि में विषयरूप में स्थित तथा आत्मा में विषयीरूप में स्थित है। १९१ कषाय शरद के आठ निक्षेप है-नामकषाय, स्थापनाकषाय, द्रश्यकषाप, उत्पत्तिकषाय-जिनके आश्चय से कषाय उत्पन्न होते हैं। प्रत्ययकषाय-कषाय-बंध के कारण | आदेशकषाय-कृविमरूप में भकुटि तानना आदि । रसकषाय-कलारस । भावकषाय-क्रोध, मान, माया, लोभ आदि चार कषाय । १९२. संसार के पांच प्रकार है- द्रक्ष्यसंसार, क्षेत्रसंसार, कालसंसार, भवसंसार तया भावसंसार । जहाँ जीव संसरण करते हैं, वह संसार है। १९२१. संसार के पांच प्रकार है-द्रव्यसंसार, क्षेत्रसंसार, कालसंसार, भवसंसार और मावसंसार | कर्म से संसार होता है अत: यहां सूत्र में उसी का अधिकार है। १९३,१९४. कर्म के दस निक्षेप है-नामकर्म, स्थापनाकर्म, द्रव्यकर्म, प्रयोगकर्म, समुदानकर्म, ईपिथिकको माधाकर्म, तपःकर्म, कृतिकर्म, भावकर्म । यह संक्षेप में दस प्रकार का कम है।' प्रस्तुत प्रसंग में अष्टविध कर्म का अधिकार है। १९५. जो पुरुष संसार का उन्मूलन करना चाहता है, वह कर्मों का उन्मूलन करे । कर्मों के उन्मूलन के लिए वह कषायों का उन्मूलन करे । कषायों के अपनयन के लिए वह स्वजनों को छोड़े-स्वजनों के स्नेह का अपनयन करे । १९६. माता मेरी है । पिता मेरे हैं । भगिनी मेरी है । भाई मेरे हैं । पुत्र मेरे हैं । पली मेरी है। इन सब में ममत्व कर तथा अर्थ-धन में गृख होकर प्राणी जन्म-मरण को प्राप्त करते रहते हैं। १. विवरण के लिए देखें ---आटी पु६१.६२ ।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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