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आचारांग निमुक्ति
२९७ १२५. तेजस्काय के शेष द्वार पृथ्वीकामिक की भांति ही होते हैं । इस प्रकार यह तेजस्काय संबंधी नियुक्ति निरूपित है।
१२६, जितने द्वार पृथ्वीकायिक के लिए कहे गए हैं, उतने ही द्वार बनस्पति के लिए हैं। भेद केवल पांच विषयों में है-विधान, परिमाण, उपभोग, शस्त्र तथा लक्षण ।
१२७,१२८. बनस्पतिकाय के जीव दो प्रकार के हैं--सूक्ष्म और बादर। सूक्ष्म सारे लोक में तथा बादर लोक के एक भाग में व्याप्त हैं। बादर के केवल दो ही प्रकार हैं--प्रत्येक वनस्पति और साधारण वनस्पति । प्रत्येकशरीरी बादर वनस्पति के बारह प्रकार है तथा साधारणयसरी बार बनपति से कोई लेप ने दोनों के छह प्रकार हैं।
१२९. प्रत्येकशरीरी वनस्पति के बारह भेद ये है-दुक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, वल्ली, पर्वग, तृण, वलय, हरित, औषधि (गेहूं, ब्रीहि आदि), जलरुह तथा कुहण-भूमिस्फोट आदि ।
१३०. संक्षेप में बनस्पति के छह भेद हैं-- अग्रवीज, मूलबीज, स्कंधबीज, पर्वधीज, बीजगह, समूच्र्छन ।
१३१. जैसे अखंड (परिपूर्ण शरीर बाले) सरसों के दानों में किसी श्लेषद्रव्य (सर्जरस--- राल) को मिलाकर, फिर बंटकर वर्ती बना दी जाती है तो उस वर्ती के प्रत्येक प्रदेश में सरसों के दानों का अस्तित्व रहता है, वैसे ही प्रत्येकशरीरी वनस्पत्ति के पृथक्-पषक् अवगाहन वाले, एकरूप दीखने वाले शरीर-संघात होते हैं।'
१३२. जैसे तिलपपड़ी बहुत तिलों से निष्पादित होती है, फिर भी उसमें प्रत्येक तिल का स्वतंत्र अस्तित्व होता है), वैसे ही प्रत्येकशरीरी वनस्पति के पृथक्-पृथक् अवगाहन वाले एकरूप दीखने वाले शरीर-संघात होते हैं।
१३३. जो अनेक प्रकार के संस्थान वाले पसे दिखाई देते हैं के सभी एक जीवाधिष्ठित होते है । ताड़, चीड़, नारियल आदि वृक्षों के स्कंध भी एकजीवी होते हैं।
१३४. प्रत्येक शरीरी वनस्पति के पर्याप्तक जीष लोक-श्रेणी के असंख्येय भागवर्ती आकाश प्रदेशों की राशि जितने परिमाण वाले हैं तथा अपर्याप्तक जीव असंखयेय लोकों के प्रदेश जितने परिमाण वाले होते हैं। साधारणशरीरी वनस्पति के जीव अनन्त लोकों के प्रदेश परिमाण जितने होते हैं।
१३५. प्रत्यक्ष दीखने वाले इन शरीरों के आधार पर वनस्पति के जीवों का प्ररूपण किया • गया है । शेष जो सूक्ष्म हैं, वे चक्षुग्राह्य नहीं होते। उन्हें आशाग्राह्य भगवद्वचन के आधार पर मान लेना चाहिए।
१. जैसे वर्तिका वैसे प्रत्येक वनस्पति के शरीर
संचात, जैसे सर्षप वैसे उन पारीरों के अधिछाता जीव और जैसे वह श्लेषद्रव्य से
___राग-द्वेष से प्रचित कर्मपुद्गलोदयमिथित
जीव ।