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________________ आचारांग नियुक्ति बंदित्तु सम्वसिद्धे, जिणे य अणुयोगदायगे सम्वे । आयारस्स भगवतो, निज्जुत्ति कित्तइस्सामि' ।। आयार अंग सुपबंध', बंभ-चरणे तहेव सत्ये य । परिणाए सग्णाए, निक्लेवो तह' दिसाणं च ।। चरण-दिसावज्जाणं, निक्लेव 'पविहो उ नायन्वो। घरणम्मि छम्विहो खलु, सत्तविहो होइ उ दिसाणं ।। जत्य य' जं जाणेज्जा, निक्खेवं निक्खिये निरवसेसं । जत्थ वि य न जाणेज्जा, चउक्कगं निखिवे तस्थ" ।। 'आयारे अंगम्मि य, पुष्यदिवो'८ घउकनिक्लेवो । नवरं पुण नाणत, भावायारम्मि ते घोच्छं ।। सस्सेगट्ठ पवतण, पढमग गणो तहेव परिमाणे । समोतारे सारे य", सत्तहि पारेहि नाणतं ।। आयारो आघालो, भागालो आगरो य ासासो । आदरिसो अंगं ति य", आइण्णाजाइ आमोक्खा दार।। सम्वेसि आयारो, तित्यस्स परतणे पढमयाए । सेसाई अंगाई, एक्कारस आणुपुवीए ।।दा।। है. यह गापा बाद जोड़ी गई प्रतीत होती है ४. चउक्कओ य (टी.), बिह० (अ)। क्योंकि यह गाथा केवल टीका और हस्त- ५. दिसाओ (अ)। प्रतियों में प्राप्त है। चूर्णिकार ने इस गाथा ६. तु (च)। का कोई संकेत व व्याख्या नहीं की है । इसके ७. अनुदा.७ । अतिरिक्त चरणदिसावजाणं' इस तीसरी ८. आचार के वर्णन के लिए देखें दशनि १५४गाथा के बारे में बिलियगाहा- यह दूसरी १६२, अंग के वर्णन के लिए देखें उनि. गाथा है ऐसा उल्लेख है। इससे भी स्पष्ट है १४४-५८ । कि मंगलाचरण की यह गाया चूर्णि के बाद ९. परम अंग (अ)। में जोड़ी गई है। १०. या (ब)। २. सुपक्वंध (म.)। ११. चिय (ब)। ३. सहा (म)।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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