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________________ निर्मुक्ति साहित्य : एक पविक्षण भाषा एवं रचना-शैली आदार सूत्र अर्धमागधी प्राकृत भाषा में निरुद्ध ग्रंथ है। भाषा की दृष्टि से यह य अन्य आपमें से बिलक्षण है। इसके प्रथम और द्वितीय श्रुतस्कंध की भाषा में भी पर्याप्त अंतर है। प्रथम श्रुतस्क की भाषा सूत्रात्मक, सुगठित एवं अंग-मार्य से युक्त है। कोमा में उपलब्ध आचारांग का प्रथम श्रुतस्कंध गद्यबहुल अधिक है, पद्यभाग बहुत कम है। पासात्य विद्वान् शूबिंग के अनुसार इसमें पद्य बहुत थे किन्तु कालान्तर में लुप्त हो गए। अनेक खंडित पद्य तो आज भी इसमें मिलते हैं। जैसे—एयं कुसलम्स दंसणं, माई पमाई पुणरेड गभं आदि। आचारांग का प्रथग श्रुतस्कंध ॥ शैली में निबद्ध आगग ग्रंथ है। दशवैकालिकनियुक्ति के अनुसार जो ऊर्थबहुल, महन् अर्थ, हेतु-पिपात-उपसर्ग से श्रीर, विराम सहित तथा बहुपाद आदि लक्षणों से युक्त हो, वह चौर्णशैली क ग्रंथ मान जारः है। इसमें ये सभी लक्षण पटित होते हैं। जो गद्य, नद्य निश्रित हो, वह भी चौर्ण कहलाता है। इस दृष्टि से भी यह आगम शैली में निबद्ध गाना जा सकता है। इसके अनेक सूक्त गत-प्रत्यागत शैली में निबद्ध हैं। उन सूक्तों की व्याख्या विभिन्न नयों से की जा सकती है। यह संक्षिप्त शैली में निबद्ध किन्तु गूढ, अर्ध को अभिव्यक्त करने वाला आगम ग्रंथ है। इसमें अनेक स्थलों पर लाक्षणिक शब्दों का प्रयोग भी हुआ है। इसका दूसरा श्रुतस्पं विस्त नली में लिखा गया है। अध्ययन एवं विषयवस्तु आचारांग के दो श्रुतस्कंध हैं। प्रथम श्रुतस्कंध में नौ अध्ययन तथा द्वितीय में पांच चूलाएं हैं। आचारांग के प्रथम श्रुतस्कंध के अध्ययन के नामों के क्रम में कुछ भिन्नता पाई जाती है। वह इस प्रकार आचासंगनियुक्ति सत्थपरिणा लोगविजय सीओसणिज्ज सम्मत्त लोगसार स्थानांग सत्थपरिणा लोगविजय सीओसणिज्ज सम्मत्त आवंती धूत दिमोह उवहाणसुस गहापरिन्गा समवायांग सत्थपरिणा लोगविजय सीओसणिज्ज सम्मत्त आवंती धुत विमोहायण उदहाणसुय महापरिणा आवश्यकसंग्रहणी सत्थपरिणा लोगविजय सीओसणिणज सम्मत लोगसार धुय विमोह महापरिणा उवहाणसुय महापरिण्णा विमोक्ख उवहाणसुय ६ दशनि १५० २ आनि ६.१२ ३. वाण ९/२। ४. सम ९/३। ५. अक्ष्यकसंग्रहगी हाई प ६६७ ६६१ । ६ प अध्ययन क नूल नाम लोगसार' है पर अदागपद (अदिषद) के आधार पर इसका एक नाम आवती भी है। किन्तु नियुक्तिकर ने 'लोसार' को औष, नाम मान है (अनि २३९)।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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