SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 319
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०६ . . . नियुक्तिपंच २०५.२०६. मरण के ससरह प्रकार है१) आचीचिमरण (९) पंडितमरण (२) अवधिमरण (१०) मिश्रमरण (३) अत्यन्तमरण (११) छयस्पमरण (४) वसन्मरण (१२) केवलिमरण (५) यशार्तमरण (१३) बहायसमरण (६) अन्तःशल्यमरण (१४) गृध्रपृष्ठमरण (गस्पृष्ट) (७) तद्भवमरण (१५) भक्तपरिज्ञामरण () बालमरण (१६) इंगिनीमरण (१७) प्रायोपगमनमरण । २०७. गुणशील गुरुओं -तीर्थकरों, गणधरों ने सतरह प्रकार के मरणों का प्रतिपादन किया है । अब उन सभी का नामोल्लेअभूतक अर्थ-विस्तार कहूंगा। २०८, जो प्रतिसमय, निरन्तर होता है तथा तरंगों की भांति चारों ओर व्याप्त होता है, बह आवीचिमरण है। उसके पांच प्रकार है--द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भाव । २०९. अवधिमरण भी द्रव्य, क्षेत्र आदि के भेद से पांच प्रकार का है । प्राणी जिन आयुष्पकमें के दलिकों को भोग कर भरता है, उन्हीं फर्मदलिकों को पून: ग्रहण कर, भोग करके मरेगा यह अवधिमरण है । आत्यन्तिकमरण भी द्रव्य, क्षेत्र आदि के भेद से पांच प्रकार का है । इसमें आयुष्यकर्म के भुक्त दलिकों को पुन: नहीं मोगा जाता। २१०, जो प्राणी संयमयोगों से विषण्ण होकर मरता है, यह वलम्मरण है। जो इन्द्रिय-विषयों के वशवी होकर मरण प्राप्त करते हैं, उनका मरण वशार्तमरण है। २११,२१२. जो लज्मा, गौरव तथा बहुश्रुत के मद से अपने दुश्चरित्र को गुरु के समक्ष नहीं कहते, वे आराधक नहीं होते । वे अहंकार के कीचड़ में निमग्न व्यक्ति अपने ज्ञान, दर्शन और चारिष विषयक अतिचार--अपराध को आचार्य आदि के समक्ष प्रगट नहीं करते, उनका सशस्यमरण होता २१३. इस प्रकार सशत्ममरण करने वाले प्राणी महान भयावह, दुरन्त इस दीर्ष संसार रूपी अटवी में चिरकाल तक भ्रमण करते हैं। २१४. अकर्मभूमि में उत्पन्न मनुष्य और तिर्यञ्च तथा देवनिकाय और नारकों के अतिरिक्त जीवों में से कुछेक जीवों के तद्भवमरण होता है। २१५. अवधिमरण और आवीधि मरण को छोड़कर शेष पन्द्रह मरण तद्भवमरण कहलाते हैं। २१६. अविरत व्यक्तियों का मरण बालमरण कहलाता है और विरत व्यक्तियों का मरण पंडितमरण कहलाता है। देशविरत व्यक्तियों का मरण बालपंडितमरण है। ---- - १. शेष जीवों अर्थात् कर्मभूमिज मनुष्य और वाले । देखें, शांटी० प० २३३ । तिर्यञ्च । उनमें भी संख्येय वर्ष की आयुष्य
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy