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________________ २५७. निमुक्तिपंचक २५६, पवजानिक्लेवो, चविहो अन'-तिस्थिगा दवे । भावम्मि उ पवज्जा, आरंभपरिग्गहच्चाओ ।। करकंड' कलिगेसु, पंचालेसु य दुम्मुहो । नमीराया विदेहेसु, गंधारेसु य नग्गती ॥ २५८. वसभे य इंदके ऊ, वलए अंबे य पुफिए बोही । करकंड 'दुम्महस्स य'.' नमिस्स गंधाररण्णो य॥ २५९. 'सेतं सुजाते" सुविभत्तसिम, जो पासिया बसहं गोमज्झे । रिद्धि अरिद्धि 'समुपेहिया णं'५, कलिंगराया वि समिवख धम्म ।। २६०, गोठेंगणस्स मझे, ढिकियसद्देण जस्स मज्झम्मि । दरिता वि दत्तवसभा, सुतिक्खसिंगा समत्यो वि' ।। २६१. पोराण य गयदप्पो, गलतनयणो चलंतवसहोद्रो । सो चेव इमो वसभो, पड्डय-परिघट्टणं सहइ ।। २६२. जो 'इंदकेउं समलंकिय" तु, दट्ठ पडत पविलुप्पमाणं । रिद्धि अरिदि समुपेहिया ण, पंचालराया वि समिक्ख धम्म । २६२।१. बुड्डिं च हाणि च ससीव दद्रु, पूराव रेगं च महानईणं । अहो अनिच्च अधुवं च नच्चा, पंचालराया वि समिक्ख धम्म" ।। २६३. मिहिलापतिस्स नमिणो, छम्मासातक वेज्ज"पडिसेहो । कत्तिय सुविणग-दंसण, अहि-मंदर नंदिघोसे य॥ १. अरिप (ह)। ७. केऊ सुअलं० (६)। २. ०कर (च.सा)। ८. विट्ठ (ह)। ३. दुम्मुहस्सा (गो)। ९. समिक्ल त्ति आर्षस्वात् समीक्षते, पर्यासोचयति ४. सेवं सुजायं (शा)। अनेकार्थत्वादनीकुरुते (उशाटी ५० ३०५)। ५. समुपेहमाणो (शांटीपा प० ३०५)। १०. मह गाथा टीका में नियुक्ति गापा के ६. २६०,२६१ ये दोनों गाथाएं टीका में नियुक्ति क्रम में मिलती है। ला और ह प्रति में तथा क्रम में नहीं हैं किन्तु व्याख्या में इनका संकेत चणि में यह गाथा निर्दिष्ट नहीं है। ऐसा मिलता है। चणि में भी 'सेय सुजायं गाहाओ संभव लगता है कि प्रसंगवश यह गाथा बाद तिन्नि' के उल्लेख के साथ इन गाथाओं को में जोड़ दी गई है। स्वीकृत किया है। सभी आदशों में ये प्राप्त ११. विजज (गो)। है। विषय की क्रमबद्धता की दृष्टि से भी १२. सुमिणग (शा)। ये निगा प्रतीत होती है।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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