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________________ १५० २४१. २४२. २४२।१. आउरचिण्णाई २४३. २४४. २४५. २४६. ओरम्भे' य कागिणी अंबएँ य ववहार सागरे देव | पंचेते दिट्ठता, ओरब्भिज्जम्मि अजय || बारंभे रसगिद्धीष, दुग्गतिगमणं च पञ्चवाओ य । उमा कथा उरब्भे, मोरब्भिज्जस्स' निज्जुत्ती ॥ एमाई, जाई चरइ नंदितो । सुक्कतिहि लाढाहि, एयं दीहाउलखणं * ।। उरभिज्जस्त निज्जत्ती सम्मत्ता २४७. निवखेवो कविलम्मी, " चउव्वि हो 'दुविहो य होइ'" दव्वम्मि | आगम- नोआगमतो, नोआगमतो य सो तिविहो । जाणगसरीरभविए, तब्वतिरितं य सो पुणो तिविहे । एगभविथ-बद्धालय, अभिमुहओ नामगोते" य ।। कविला उणामगोतं, " वेदतो भावतो भवे कविलो । तत्तो समुट्ठियमिणं, अभयणं काविलिज्जति ॥ कोसंब कासव जसा, कविलो सावत्थि इंददत्तो" य । इन्भे य सालिभद्दे, धणसेट्ठि पसेणई राया ॥ कविलो निचिचयपरिवेसियाइ आहारमेत्तसंतुट्टो | वावारितो दुहि मासेहि, सो निग्गओ रति ॥ १. उम्भे (ला) | २. कागणी (ला) । ३. गोरमीयम्म (ह) । ४. ० गिडि ( चू), ०गेही (ह, ला) । ५. उरब्भि० (शां, चू) । ६. यह गाथा बाद में प्रक्षिप्त हुई है क्योंकि गा. २४२ के अंतिम चरण 'ओरब्भिज्जस्स निज्जुती' से स्पष्ट है कि इस अध्ययन की नियुक्ति यहीं समाप्त 'जाती है । इसके अतिरिक्त टीकाकार ने मूल उत्तराध्ययन सूत्र की पहली गाथा के साथ इस गाथा का संबंध 93 निर्युक्तिपंचक ७. ८. ९ जोड़ा है तथा एक कथानक का संकेत दिया है । चूर्णि में इस गाथा का कोई संकेत नहीं है, अतः हमने इसे निया के क्रम में नहीं रखा है । कविलम्मि (ह) । विहोम (शां)। ० मुही (ह) | १०. ० गोए (शां) । ११. गोयं (शांच्) । १२. इंदणामो (ला) । १३. य बिहि मासएहि (ला), छह माह (ह) ।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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