________________
रिक्त साहित्य . एक पर्यवेक्षः।
शासन देवी प्रकट हुई। संघ ने कहा अप इसे सीनधरत्वामी के पास ले जगाएं। उस समय शासन देवता साध्वी पक्ष को सीनधर स्वामी के बस ले गए। सीमंधर र तामी ने यक्षा को प्रतिबोधित किया और कल तुग इसके लिए दोषी नहीं हो। तुम्हारा भाई नहाकल्प में देश बन। है अतः तुम दुखी न रहकर धर्म में दृढ़ बनो। उस समय सीमंधर स्वामी ने रक्षा को कर चूलिकाओं की गवना ई। इनमें दो चूलिकाएं दशकालिक के साथ तथा दो आगरा। (तीसरी और चौथी चूल.) के साथ जोड़ दी गई।'
प्रस्तुत नियुक्ति का कल-निधरण तथा वर्ग का उल्लेख करना कठिन है। लेकिन अत्यत संक्षेप में इसके द्वारा दशबैक लिऊ की रचना क इतिहास जात हो जाता है। संभावग की जा सकती है कि प्रस्तुत नियुक्ति दशवैका लकनियुक्ति के बाद रची गयी क्योंकि इसकी बार गाथाओं को इस निथुक्ति में अक्षरशः लिया गया है। प्रार्थी काल की यह पद्धत रही के किस रा को सुरक्षित रखने के लिए उसे पद्यबद्ध कर देते थे जिससे नौखिक और मैंहस्थ पर पर में सुविधा रहती थी। उत्तराध्ययन सूत्र एवं उसकी नियुक्ति
उत्तराध्ययन अर्धमागधी प्राकृत भाषा में निबद्ध आकार प्रधान आगम है। उपमाओं की बलता के कारण हिटरनित्स ने इत्ते शमण काव्य की मारि में रखा है। इसमें साधु के आचार एवं तत्त्वज्ञान का सरल एवं सुबोध शैली में वर्णन किया गया है। बाल शान्टियर, द गैरिगो, विंटरनिस तथा हर्मन लेकोबी आदि विद्वानों ने इसे आगम की सूची में ४१ वां जगम माना है। दिगम्बर साहित्य में अंगबाध के १४ प्रकारों में सातवां दशवकालिक और आठव उत्तराध्ययन का स्थान है। नंदीसूत्र में कालिक सूत्रों की गणना में प्रथम स्थान उत्तर ध्यन का है। वर्तमान में इसकी गणना मूल सूत्रों में की जाती है। इसको भूल सूत्र क्यों माना गण इस बारे में विद्वानों में अनेक मतभेद हैं। पाश्चात्य विद्वान् शान्टियर' एवं प्रो. पटवर्धन के अनुसार इसमें महावीर के मूल शब्दों का संग्रह है, इसलिए इसे मूलसूत्र कहा जाता है। किन्तु यह तर्क युक्तिसंगत नही लगता क्योंकि दशवैकालिक मूलसूत्रों के अंतर्गत है पर वह आचार्य शय्यंभव द्वारा निर्मूढ़ है। डें शूबिंग ने साधु जीवन के मूलभूत नियमों का प्रतिपादक होने के कारण इले मूलसूत्र कहा। यह समाधान भी तर्क की कसौटी पर सही नहीं उतरता क्योंकि अनुयोगद्वार और नंदी में अन्य विषयों का प्रतिपादन है। प्रो. विंटरनित्स के अनुसार इस मूलसूत्र पर अनेकविध व्याख्या-साहित्य लिखा गया इसलिए इसे मूलसूत्र कहा गया। यह मान्यता भी तर्कसंगत नहीं लग ती क्योंकि आवश्यक सूत्र पर सबसे अधिक व्याख्या साहित्य मिलता है। एक मान्यता यही प्रसिद्ध हैं कि आत्मा के चार मूल गुण हैं— ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तत्र । नंदी में मुख्यत: ज्ञान का, अनयोगद्वार में दर्शन का. दशवकालिक में चरित्र का तथा उत्तराध्ययन में तप का वर्णन है अत. ये चारों मूल सूत्र है।
चूर्णिकाल में श्रुतपुरुष के मूल स्थान में अचारंग, और सूत्रकृतांग का स्थान था। उत्तरकालीन श्रुत्पुरुष की मूलत्यापन्में दशवैमालिक और उत्तरध्यय- आ गई। इन्हें मूलसूत्र मानने का सही सर्वाधिक संभावित हेतु है, ऐसा आवाश्री तुलसी का मंतव्य है। भूलत: इनमें मुनि के मूल गुणों
१ परिशिष्ट पर्व ५/८४..। २. The utaradhyayana stotra, prelace parte 32.
३ The Dasavekalika sutra: a study. Page i6. ४. A Histroy of Indian literature vo2. Page 466. ५ दस्..... भूमिका ५।