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________________ नियुक्तिपंचक ४१. 'पणयालीसा बारस'', छन्भेया आययम्मि संठाणे । वीसा चत्तालीसा, परिमंडलगे उ संठाणे ।। ४१२१ गिद्धस्स णिवेण दुहाहिएण, लुक्खस्स लुक्खेण दुहाहिएण । णिद्धस्स लुक्खेण उवेति बंधो, जहन्नवज्जो विसमो समो वा ।। ४२. धम्मादिपदेसाणं, पंचण्ह उ जो पदेससंजोगो। तिण्ह' पुण अणादीओ, सादीओ होति दोण्हं तु ॥ अभिपेतमणभिपेतो, पंचसु विसएसु होति नायम्यो । अणुलोमोऽभिप्पेतो', अणभिप्पेतो यः पडिलोमो ।। सव्वा ओसधजनी गंधजुली र भोग मनिह । रागविहि गोतवादितविहीं, अभिप्पेतमणुलोमा || अभिलावे संजोगो, दवे खेत्ते य कालभावे य । दुगसंजोगादीओ, अखरसंजोगमादीओ ।। संबंधणसंजोगो, सच्चित्ताचित्तमीसओ चेक । दुपदादि हिरण्णादी, रह-तुरगादी य बहुधा उ ।। खेत्ते काले य तहा, दोण्ह वि दुविहो उ होइ संजोगो । भावम्मि होइ दुविहो, आदेसे चेवऽणादेसे ।। ४८. आदिट्ठो आदेसंसि, बहुविहे सरिसनाण-चरणगते । सामित्त पच्चयाइम्मि चेव किंचित्तओ वोच्छ॥ ४९, 'ओदइय" ओवसमिए, खइए य तहा खओवसमिए य१२ ॥ परिणाम-सनिवाए, य छबिहो होतऽणादेसो" ।। १. पणयाला बारसगं (ह)। १०. 'ला' तथा अन्य हस्त मादों में यह गाथा ३. प्रस्तुत गाथा प्रज्ञापना सूत्र (१३।२२५२) की उपलब्ध है लेकिन टीकाकार और पूर्णिकार है। टीकाकार और चूणिकार ने इसकी ने न इसकी सूचना दी है और न व्याख्या की व्याख्या नहीं की है। ला और ह प्रति में यह है । टीका के संपादक ने 'स्वचिदा प्राक' गाथा प्राप्त है। यह गाथा निगा की नहीं इतना उल्लेख करके इस गाथा को टिप्पण में होनी चाहिए। दिया है। किन्तु प्रसंग के अनुसार यह निगा ३. तिग्नि (ह.ला)। की होनी चाहिए। क्योंकि गाथा में निर्दिष्ट ४. अणुलोमं अभिपेतो (ला,ह)। प्रतिज्ञा के अनुसार इस गाथा की व्याख्या उनि ५. उ (ह)। गा. ६० एवं ६१ में है। ६. तोसध० (ला)। ११. क्वचित्त'उदयिए' सि पठ्यते (शाटी प ३३)। ७. होयण (ला)। १२. उदइय-उवसम-खइएसु तह खाए य उवलमिए ८. विही य (ला,ह)। ९. ०प्पेत अणु० (ह)। १३. होति गा० (पू)।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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