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३४८ छहि' मासेहि अधीतं अभयणमिणं तु अज्जमणगेणं । छम्मासा परियाओ, अह कालगतो समाधीए । आनंद अंसुपात कासी' सेज्जंभवा तहि थेरा । जसभद्दाण* * पुच्छा, कधणा य वियालणा संघे || कालियनिज्जुती समत्ता
३४९.
३४९।१ णायम्मि गिहियन्त्रे अगिव्हियम्वम्मि चेव अत्यमि । जयव्यमेव इति जो, उवदेसो सो नयो ताम ।।
३४९।२. सबसि पि नयाणं, बहुविहवत्तष्वयं निसामेत्ता । तं सब्वनयविसुद्ध जं चरणगुणट्टिओ साहू ||
१. छह (हा), ब प्रति में स्थानाभाव के कारण केवल प्रथम पद ही मिलता है ।
२. ०प्पा (ख) |
३. काही ( स ) ।
४. जसभहस्स ( अ, रा, हा) ।
५.
X ( स ) ।
६. वियारणा कया संघे ( स ) |
19.
३४९।१,२ ये दोनों गाथाएं अगस्त्यमिह चूर्णि
नियुक्तिपंचक
के अंत में दी हुई हैं लेकिन गाथाओं के क्रम में नहीं जोड़ा है। आदशों में ये गाथाएं मिलती हैं तथा टीका में भी इन दोनों की व्याख्या की गई है। ये गाथाएं दर्शनि १२५, १२६ में आयी हुई हैं इसलिए पुनरुक्ति के कारण उन्हें पुनः निगा के क्रम में नहीं जोड़ा