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निर्यसिपंचक
२०३. 'लोइगा वेइगा' चेव, तहा सामाइया विऊ ।
निच्चो जीवो पिहो देहा, इति सब्वे ववत्थिया' ।। २०४. फरिसेण जहा वाऊ, गिज्झती कायससितो।
नाणादोहिं तहा जीवो, गिज्झती' कायसं सिनो' । २०५. अणिदियगुणं जीवं, दुष्णेयं मंसचक्खुणा ।
सिद्धा पासंति सव्वग्ण, नाणसिद्धा य साहणो । २०६. कारणविभाग कारणविणास बंधस्स पच्चयाभावा ।
विरुद्धस्स य अत्यस्सा पादुब्भावा 5 विणासा यादा।।
१. लोइया वेइया (हा)। २. ववट्ठिया (अ)। इस गाथा का अचू में कोई उल्लेख नहीं है किन्तु जिचू में यह गाया मिलती है। मुद्रित टीका की प्रति में इसके आगे 'भाष्यम्' लिखा है किन्तु यह नियुक्ति की गाथा है क्योंकि इसमें अन्यत्व नामक पाच-द्वार की व्याख्या है तथा इससे अगली गाथा के प्रारंभ में टीकाकार ने स्पष्ट लिखा है कि एतदेव व्याचष्टे (मा, ३१ हाटी प १२७) अर्थात इसी गापा की ब्याख्या अगली भाष्यगाथा में की है। भाष्य की व्याख्या से भी यह गाथा स्पष्ट रूप से नियुक्ति की प्रतीत होती है । भाष्य गाथा इस प्रकार हैलोगे अच्छेज्ज भेजो,
बेए सपुरीसदद्धगसियालो। समए जहमासि गओ,
तिविहो दिब्वाइ संसारो।।
(भा. ३१ हाटी प १२७) ३. गिझई (हा), गेज्झती (अचू) । ४. २०४,२०५ की गाथा हाटी में भाष्यनाथा के
कम में हैं किन्तु दोनों चूणियों में नियुक्तिगाथा के रूप में व्याख्यात हैं। पिछली गाथाएं पूर्वलिखित प्रमाणों से तो नियुक्तिमाथा है ही। साथ ही छंद रचना की दृष्टि से भी नियुक्ति की सिद्ध होती है। टीका में २५, २८,३०,३३,३४ (हाटी प १२६,१२७) की गाथाएं भाष्यगाथा के श्रम में हैं। ये सभी श्लोक अनुष्टुप् छंद में हैं। इनके अतिरिक्त अन्य सभी माष्यगाथाएं आर्या छंद में हैं। इस प्रमाण से स्पष्ट है कि टीका की मुद्रित प्रति के आधार पर इनको भाष्यगाथा नहीं माना जा सकता । अत: इन पांच गाषाओं को (२०१,२०५) हमने नियुक्तिगाथा माना है। ५. पिछली गाथाओं की भांति यहाँ भी गा.
२०६ की व्याख्या में ११ भाष्य गाथाएं लिखी गयी हैं (भा. ३७-४७ हाटी प १२८१३१) । २०६वीं गाथा की व्याख्या में टीकाकार कहते हैं -"वक्ष्यति च नियुक्तिकार: जीवस्य सिद्धमेवं निच्चसममुसमन्नत्तं (गा, २४०) व्यासार्यस्तु भाष्याचवसेयः (हाटी प १२८)।