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विषयानुक्रम
पहला अध्ययन
२५/१,२. अध्ययन के चार प्रकार और दुमपुष्पिका
के साथ उनकी संयोजना। १. मंगलाचरण ।
२६,२७. अध्ययन शम्द के निरुक्त। आदि, मध्य और अंत मंगल ।
२८. आचार्य को दीपक की उपमा। चार अनुयोगों का नामोल्लेख।
२९. भाब आय-लाभ का स्वरूप । चरणकरणानुयोग का अधिकार और उसके द्वार।
३०. भाव अध्ययन का स्वरूप । दशकालिक का अनुयोग ।
३१,३२. दुम शब्द के निक्षेप तथा एकार्थक । ७. दसकालिक-दस और काल के निक्षेप-कथन की
३३. पुष्प शब्द के एकार्थक । प्रतिज्ञा।
३४. द्रुमपुष्पिका अध्ययन के एकार्थक । एक और दश शब्द के निक्षेप ।
३५. पुच्छा का महत्त्व । जीवन की बाला, क्रीडा आदि दश दशाएं।
३६. धर्म शब्द के निक्षेप और उनका नानात्व । काल शब्द के निक्षेप ।
३७-३९. द्रव्य धर्म के भेद-प्रभेद । बशर्वकालिक नामकरण की सार्थकता।
४०, लोकोत्तर धर्म के भेद । दशावकालिक वक्तव्यता को द्वार गाथा ।
द्रव्य और भाव मंगल का स्वरूप । १३, दशवकालिक नियूं हक माचार्य शय्यंभव को ४२. अहिंसा का स्वरूप तथा उसके भेद । वंदना।
सतरह प्रकार के संयम का उल्लेख । प्रस्तुत रचनाका कारण और उसका नियंत्रण
बाह्यतप के भेद । काला
आभ्यंतर तप के भेद । आत्मप्रवाथ पूर्व से धर्मप्रमाप्ति (चौथा अध्ययन) ४६. शिष्य की ग्रहणशक्ति के आधार पर उदाहरण तथा कर्मप्रवाद पूर्व से पिटेषणा (पांचवां और हेतु का प्रयोग। अध्ययन) के उद्धरण का संकेत ।
४७. न्याय के पांच और दश अवयवों का उल्लेख । संस्थप्रवाद पूर्व से वाक्पशुद्धि तथा नर्वे पूर्व की ४७/१. उदाहरण और हेतु के भेद-प्रभेद । तीसरी वस्तु से शेष सभी अध्ययनों के उद्धरण का ४८. उदाहरण के एकार्थक । संकेत ।
उदाहरण के दो भेद-परित और कल्पित सथा गणिपिटकद्वादशांगी से दशवकालिक के
उनके चार-चार भेद । नि!हण का उस्लेख।
आहरण के चार प्रकार । १५. अध्ययनों के विषय-वर्णम की प्रतिज्ञा । ५१. द्रव्य अपाय में दो वणिक भाइयों की कथा। १९-२२. अध्ययनों के विषयों का संक्षिप्त वर्णन ।
५२. क्षेत्र, काल और भाव अपाय की कथाओं का
संकेत 1 २१. दो चूलिकाएं एवं उनका प्रयोजन ।
५३,५४. द्रव्य आदि अपाय और पारलौकिक चिन्तन । २४. प्रत्येक अध्ययन की विषय-वस्तु के कथन की
५५,५६. द्रव्यानुयोग के आधार पर अपाय का चितन । प्रतिज्ञा।
५७,५८. उपाय के चार प्रकार और उनके उदाहरणों का २५. प्रथम अध्ययम के चार द्वार-।
संकेत ।