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________________ पिक्त साहित्य : एक पर्यवेक्षण ११.. निर्मुक्ति से ठाणं में संक्रांत हुए हैं। जातक' में भी नियुक्ति की कुछ गाथाएं संक्रांत हुई हैं। उदाहरणार्थ उत्तराध्यपननियुक्ति (गा. २५७) की संवादी गाधा द्रष्टव्य है करकण्डु नाम कलिङ्गानं, गन्धारानञ्च नग्गजी । निमिराजा विदेहानं, पञ्चालानञ्च दुमुक्खो।। नियुक्तिकार अपने समकालिक एवं पूर्ववर्ती आचार्यों की रचना से भी प्रभावित हुए हैं। नियुक्ति में वर्णित वर्णान्तर जातियों का उल्लेख वैदिक धर्म ग्रंथों से लिया गया प्रतीत होता है। महाभारत, गौतमसूत्र एवं मनुस्मृति आदि ग्रंथों में इनका पूरा वर्णन मिलता है। दशवकालिकनियुक्ति में वर्णित असंप्राप्त और संप्राप्त काम के भेद एवं वात्स्यायन के कामसूत्र में वर्णित काम के अंगों में अद्भुत साम्य है। दशवकालिकनियुक्ति में काव्य संबंधी वर्णन किसी कान्यशास्त्र के ग्रंथ से लिया गया है। नियुक्तिकार स्वयं भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि 'एव विहिण्णू कवी बेंति' अर्थात् विचक्षण कवियों ने ऐसा कहा है। आगम-संपादन का इतिहास महाराष्ट्र के मंचर गांव में पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी 'धर्मदूत' पत्र का अवलोकन कर रहे थे।उसमें बौद्ध ग्रंथों के संपादन एवं प्रकाशन की योजना थी। इस सूचना ने गुरुदेव के मन में टीस मैदा कर दी। उनके मन ने विकल्प उठा कि जब बौद्ध आगमों का आधुनिक दृष्टि से संपादन हो सकता है तो फिर जैन आगमों का संपादन क्यों नहीं हो सकता? गुरुदेव के मन में एक संकल्प जागा कि आगमों की विशाल श्रुतराशि भी अच्छे ढंग से संपादित होकर जनता के समक्ष आनी चाहिए। गुरुदेव ने अपने मन की वेदना मनि नथमल आचार्य महाप्रज्ञ आदि संतों के सम्मख प्रस्तत की। ार्य महाप्रज्ञ) आदि संतों के सम्मुख प्रस्तुत की। संतों में गुरुदेव की कल्पना एवं वेदना को समझा और एक स्वर में कहा कि हम आपकी इस भावना को पूरा करेंगे। तप-अनुष्ठान से उज्जैन चातुर्मास में जो आगम-कार्य प्रारंभ हुआ, वह आज तक अनवरत गति से चल रहा है। आगम-कार्य प्रारंभ करने से पूर्व आचार्य तुलसी ने तीन बातों की ओर सबका ध्यान आकृष्ट किया—१. वर्तमान परिस्थितियों का संदर्भ २. युगानुरूप साहित्यिक सौन्दर्य ३. आकर्षक शैली। इसके साथ-साथ तटस्थता, प्रामाणिकता, समीक्षात्मक अध्ययन, तुलनात्मक अध्ययन और समन्वय-नीतिइन पांच मापदंडों को भी संपादन क. आधार बनाने की प्रेरणा दी। ___आचार्य तुलसी की आगम-संपादन कार्य के प्रति कितनी तड़प थी, इसे इस घटना से जाना जा सकता है। पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी गुजरात प्रवास पर थे। वैशाख महीने की चिलचिलाती धूप में १२ मील का विहार कर गुरुदेव लगभग सवा दश बजे सांतलपुर पहुंचे। स्थान पर पहुंचते ही गुरुदेव ने कायोत्सर्ग किया। संतों ने सोचा आज संभवत: आगम-संशोधन का कार्य स्थगित रहेमा पर दोपहर ) नियत समय होते ही आचार्य श्री ने संतों को याद किया और पाह-संशोधन का कार्य प्रारंभ कर दिया। मुरुदेव ने अपनी टिप्पणी प्रस्तुत करते हुए कहा-"विहार चाहे कितना ह. लम्बा क्यों न हो, आग: १ (क) कथा का वर्णन देखें दशनि गा. १६२-६१. ठाणं ४/२४६-५० । (ख) हेतु का वर्णन देखें दी । ४९-८५, भाग ४/४९९-५०४। २. जातक ४०८/" ३. दानि १४८.
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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