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________________ नियुक्ति पंचक ११६ अधिक सूक्ष्म होता है क्षेत्र क्योंकि अंगुल श्रेणिमात्र क्षेत्र के प्रदेशों के अपहार में असंख्येय उत्सर्पिणियां और अवसर्पिणियां बीत जाती हैं। “उस समय ऐसें द्रथः का रुख जया था. जिससे दीए की बाती बिना तेल के ही केवल पानी से जलती थी । काश्मीर आदि देशों में काजी के पानी से दीया जलाया जाता था। चक्रवर्ती कां गर्भगृह उष्णकाल में उष्ण तथा शीतकाल में शीट रहता था।' नालिका आदि के द्वारा समय का सही ज्ञान कर लिया जाता था। जमदग्निजटा, तमालपत्र आदि गंध द्रव्यों को मल्लिका— चमेली पुष्प से वासित कर दिया जाता तो वह गंधद्रव्य करोड मूल्य वाला हो जाता था। सूत्रकृतांगनियुक्ति में पद्म का वर्णन आश्चर्य पैदा करने वाला है। विज्ञान के द्वारा यह खोज का विषय है कि ऐसा कमल कहां होता है और उसे कैसे पाया जा सकता है? नियुक्तिकार ने सोने के आठ गुणों का संकेत किया है१. विषघाती - विष का नाश करने वाला 1 — २ रसायण – यौवन बनाए रखने में तनर्थ । ३. मंगलार्थ — मांगलिक कार्यों में प्रयुक्त । ४ प्रविनीत —– यथेष्ट आभूषणों में परिवर्तित होने वाला । ५ प्रदक्षिणावर्त - तपने पर दीप्त होने वाला ६. गुरु— सार वाला। ७. अदा अग्नि में नहीं जलने वाला । ८ अकुधनीय- कभी खराब न होने वाला । " नियुक्तिकार ने सोने की कण, छेद, ताप, ताड़ना आदि चार कसौटियों का भी उल्लेख किया है।' सोने को चमकाने के लिए सौराष्ट्रिक मिट्टी का प्रयोग किया जाता था।' कृत्रिम सोना तैयार किया जाता था। वह शुद्ध सोने जैसा लगता पर कसौटियों पर खरा नहीं उतरता था।" स्वास्थ्य विज्ञान एवं आयुर्वेद नियुक्तिकार आयुर्वेद के भी विज्ञाता थे। प्रसंगवश उन्होंने तत्कालीन आयुर्वेद एवं चिकित्सा के अनेक महत्त्वपूर्ण तथ्यों का संकेत दिया है। रोगी के फोड़े को काटकर उसकी सिलाई की जाती थी। गलयंत्र के द्वारा अपथ्य के प्रति कुत्सा पैदा की जाती थी, जिससे अजीर्ण-दोष की निवृत्ति हो जाती थी । " जेठ और आषाढमास की वायु का शरीर में निरोध होने से व्यक्ति चलने-फिरने में असमर्थ हो जाता था। आज की भाषा में इसे लू लगना कहा जा सकता है। सांप, बिच्छू आदि काटने पर मंत्रों का प्रयोग किया जाता था। दो रजनी पिंडदारु और हल्दी, माहेन्द्र फल, त्रिकटुक के तीन अंग- सूंठ, १ आनि ८९ । २. तूच् १ पृ. १६३; कस्मीरः दिषु च काञ्जिकेनानि दीपको दीप्यते । ३ तूच १ पृ १६३, चक्कवट्टिस्स गन्भहिं सीते उन्ह उन्हे सीतं । ४. दशनि ५८ । ५. उनि १४६ । ६. सूनि १६२-६५ । .. दशनि ३२६ । ८. दशनि ३२७ । ९. दशजिचू पृ. १७९ । १० दशहाटी प. २६३ । ११. दशनि ३४१ । १२ उनि १३०. १३१ | १३ दशहांटी ५. २३६ ।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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