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आत्म शुद्धि के उपाय छाया:-कथञ्चरेत् ? कथं तिष्ठेत् ? कथमासीत् कथं शयीत् ।
कथं भुजानो भाषमाणः पापं कर्म न बध्नाति ॥२०॥
___ अन्वयार्ष: है प्रभु ! (कह) कैसे (घरे) चलना ? (कह) कसे (घि8) ठहरना ? (कह) कैसे (आसे) बैठना ? (कह) कैसे (सए) सोना ? जिससे (पाव) पाप (कम्म) कर्म (न) नहीं (बंधई) बंधते, और (कह) किस प्रकार ( अंतो) खाते हुए, एवं (भासंतो) बोलते हुए पाप कर्म नहीं बंधते ।
भावार्थ:-हे प्रम ! कृपा करके इस सेवक के लिए फरमाचे कि किस तरह चलना, खड़े रहना, बैठना, सोना, खाना और बोलना चाहिए जिससे इस आत्मा पर पाप कर्मों का लेप न चढ़ने पावे ।
॥ श्रीभगवानुवाच ॥ मूल:----जयं चरे जयं चिट्ट, जयं आसे जयं सए ।
जयं भुजंतो भासंतो पावं कम्मं न बंधई ॥२११६ छायाः—यतं चरेत् यतं तिष्ठेत् यतमासीत यतं शयीत् ।
यतं भुजानो भाषमाणः पापं कर्म न बध्नाति ।।२।। अन्वयार्थ:-हे इन्द्रभूति ! (जयं) यत्तापूर्वक (परे) चलना (जयं) यत्नापूर्वक (चिट्ठ) ठहरना (जयं) यत्नापूर्वक (आसे) बैठना (जयं) यत्नापूर्वक (सए) सोना, जिससे (पाव) पाप (कम्म) कर्म (न) नहीं (बंधई) बंधता है। इसी तरह (जयं) यस्तापूर्वक ( जंतो) खाते हुए (गासंतो) और बोलते हुए भी पाप कर्म नहीं बँधते ।
__ भावार्थ:-हे गौतम ! हिंसा, झूठ, चोरी आदि का जिसमें तनिक भी व्यापार न हो ऐसी सावधानी को पल्ला कहते हैं। यत्नापूर्वक चलने से, खड़े रहने से, बैटने से और सोने से पाप कर्मों का बंधन इस आत्मा पर नहीं होता है। इसी तरह पत्नापूर्वक भोजन करते हुए और बोलते हुए भी पाप कमों का बंध नहीं होता है। अतएव, हे आर्य ! तू अपनी दिनचर्या को खूब ही सावधानी पूर्वक बना, जिससे आत्मा अपने कर्मों के द्वारा मारी न हो।