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________________ निग्रंथ प्रमषन अषमार्गः-हे इन्द्रभूति ! (जह) जैसे (मिजलेवालित्तं) मिट्टी के लेप से लिपटा हुआ वह (गरुयं) भारी (तुर्व) तूंबा (अहो) नीचा (वयई) जाता है । (एवं) इसी तरह (आसवकपकम्मगुरू) आस्रव कृत कर्मों द्वारा भारी हुआ (जीया) जीव (अहगई) अधोगति को (बच्चंति) जाते हैं । भावार्थ:-हे गौतम ! जैसे मिट्टी का लेप लगने से तूंबा मारी हो जाता है, अगर उसको पानी पर रख दिया जाय तो वह उसकी तह तक नीचा ही चला जायगा ऊपर नहीं उठेगा । इसी तरह हिंसा, झूठ, चोरी, मैथुन और मूर्छा आदि आस्रब-रूप कर्म कर लेने से, यह आत्मा भी मारी हो जाता है । और यही कारण है कि तब यह आत्मा अधोगति को अपना स्थान बना लेता है। मूल:-तं चेव तबिमुक्के, जलोवरि ठाइ जायलहुभावं । जह तह कम्मविमुक्का, लोयग्गपइट्ठिया होति ॥१६॥ छाया:--स चैव तद्विमुक्त: जलोपरि तिष्ठति जातलघुभावः । यथा तथा कर्मविमुक्ता लोकानप्रतिष्ठिता भवन्ति ॥१६॥ अन्वयार्थ:-हे इन्दभूति ! (जह्) जैसे (तं चेव) वहीं तूंबा (तविमुषक) उस मिट्टी के लेप से मुक्त होने पर (जायलकुमाव) हलका हो जाता है, तब (जलोबरि) जल के ऊपर (ठाइ) ठहरा रह सकता है। (तह) उसी प्रकार (कम्मषिमुक्का) कम से मुक्त हुए जीन (लोअग्गपहटिया) लोक के अग्रभाग पर स्थित (होति) होते हैं। भावार्थ:- हे गौतम ! मिट्टी के लेप से मुक्त होने पर वही तू'बा जैसे पानी के ऊपर आ जाता है, वैसे ही आस्मा भी कर्म रूपी बन्धनों से सम्पूर्ण प्रकार से मुक्त हो जाने पर सोक के अग्र भाग पर जाकर स्थित हो जाता है । फिर इस दुःखमय संसार में उसको चक्कर नहीं लगाना पड़ता। ॥ श्रीगौतमउवाच । मूल:--कहं चरे ? कहं चिट्ठ ? कहं आसे? कहं सए । __ कह भुजतो? भासंतो, पावं कम्म न बंधई ॥२०॥
SR No.090301
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size4 MB
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