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________________ २२४ निग्ध-प्रवचन भावार्थ:-- हे गौतम ! अपने बड़े-बूढ़े गुरुजनों को कोई भी बात पूछना हो तो आसन पर बैठे हुए या शयन करने के विछोने पर बैठे हो बैठे कमी नहीं पूछना चाहिए। क्योंकि इस तरह पूछने में गुरुजनों का अपमान होता है। और जान की प्राप्ति भी नहीं होती है। अतः उनके पास जा कर उकडू आसन' से बैठ कर हाथ जोड़कर प्रत्येक बात को गुरु से पूछ । मूल:--जं मे बुद्धाणुसासंति, सीएण फरसेण वा । मम लाभो ति पेहाए, पयो तं पडिस्सुरो ।।४।। छायाः-यन्मां बुद्धा अनुशासन्ति, शीतेन परुषेण वा। मम लाभ इति प्रेक्ष्य, प्रयतस्तत् प्रतिशृणुयात् ॥४॥ अम्वयार्थ - हे इन्द्रभूति ! (बुद्धा) बड़े-बूढ़े गुरुजन जं) जो शिक्षा दें, उस समय यो विधार करना चाहिए, कि (मे) मुझे (सीएण) शीतल (4) अथवा (फरसेण) कटोर शब्दों से (अणुसासंति) शिक्षा देते हैं । यह (मम) मेरा (लामो) लाम है (त्ति) ऐसा (पहाए) समझा कर षट्कायों की रक्षा के लिए (पययो) प्रयत्न करने वाला महानुभाव (तं) उस बात को (पहिस्सुणे) श्रवण करें। भावा हे गौतम ! बड़े-बूढ़े व गुरुजन मधुर या कठोर पाब्दों में शिक्षा दें, उस समय अपने को यों विचार करना चाहिए, कि जो यह शिक्षा दी जा रही है, वह मेरे लौफिक और पारलौकिक सुस्त्र के लिए है । अत: उनकी अमूल्य शिक्षाओं को प्रसन्नचित्त से श्रवण करते हुए अपना अहोभाग्य समझना चाहिए । मूल:-हियं विगयभया बुद्धा, फरुसं पि अणुसासणं । वेसं तं होइ मुढाणं, खंतिसोहिकरं पयं ।।५।। छाया:-हितं विगतभया बुद्धाः, परुषमप्यनुशासनम् । द्वेषं भवति मूद्वानां, शान्तिशुद्धिकरं पदम् ।।५।। सम्बयार्प-है इन्द्रभूति ! (चिगयमया) घसा गया हो भय जिससे ऐसा (बुद्धा) तत्त्वज्ञ, विनयशील अपने बड़े-बूढ़े गुरुजनों की (फरस) कठोर (अगु१ Sitting on kneels.
SR No.090301
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size4 MB
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