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________________ नरक-स्वर्ग-निरूपण २२१ अन्वयार्थ:-हे इन्द्रभूति ! (वित्त) क्षेत्र जमीन (वस्थु) घर वगैरह (थ) और सोना-चांदी (पसवो) गाय-मैस वगैरह (दास) नौकर (पोस) कुटुम्बी अन, इस तरह से (चत्तारि) ये चार (कामखंघाणि) काम मोगों का समूह बहुतायत से है, (तत्य) वहां पर (से) यह (उबवज्जई) उत्पन्न होता है ।। भावार्य:- हे गौतम ! जो आत्मा गृहस्थ का यथातथ्यधर्म तथा साधुनत पाल कर स्वर्ग में जाती है. वह वहां से च्यव कर ऐसे गृहस्थ के घर जन्म लेती है, कि जहां (१) जुली जमीन अर्थात् बाग वर्गरह, खेत वगैरह (२) ढंकी जमोन अर्थात् मकानात वगैरह (३) पशु भी बहुत हैं और (४) नौकर चाकर एवं कुटुम्बी जन मी बहुत है, इस प्रकार को यह चार प्रकार के काम मोगों की सामग्री है उसे समृद्धि का प्रथम अङ्ग कहते हैं । इस अंग की जहां प्रचुरता होती है वहां स्वर्ग से आने वाली आत्मा जन्म लेती है। और साथ ही में जो आगे नौ अंग कहेंगे वे भी उसे वहाँ मिलते हैं। मल:--मित्तवं नाइ होइ, उचोर म दान । अप्पायके महापण्णे, अभिजाए जसोबले ॥३३॥ छाया:--मित्रवान् ज्ञातिवान् भवति, उच्चैर्गोत्रो वीर्यवान् । अल्पालङ्को महाप्राज्ञः, अभिजातो यशस्वी बली ॥३३॥ मापयार्य :-हे इन्द्रमूति ! स्वर्ग से आने वाला जीव (मित्त यं) मित्र वाला (नाइव) कुटुम्ब वाला (उत्वगोए) उच्च गोर बाला (वण्णव) कांति वाला (अप्पाय के) अल्प व्याधि पाला (महापणे) महान् बुद्धि वाला (अभिजाए) विनय वाला (जसो) यशवाला (य) और (बले) बल बाला (होइ) होता है। भाषापः-हे गौतम ! स्वर्ग से आये हुए जीव को समृद्धि का झंग मिलने के साथ ही साथ (१) वह अनेकों मित्रों वाला होता है । (२) इसी तरह कुटुम्बी जन भी उसके बहुत होते हैं (३) इसी तरह वह उच्च गोत्र वाला होता है। (४) अल्प व्याधिवाला (५) रूपवान् (६) विनयवान् (७) यशस्थी (८) बुद्धिशाली एवं (९) बली, वह होता है । ॥ इति सप्तदशोऽध्याय:॥ -
SR No.090301
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size4 MB
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