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________________ नरक-स्वर्ग-निरूपण मूल:-एयाणि सौच्चा णरगाणि धीरे, न हिंसए किंचण सम्वलोए । एगंतदिट्ठी अपरिग्गहे उ, बुज्झिज्ज लोयस्स वसं न गच्छे ।।१३।। छाया:एतान् श्रुत्वा नरकान् धीरः, न हिस्यात् कञ्चन् सर्वलोके । एकान्त दृष्टिरपरिग्रहस्तु, बुध्वा लोकस्य वशं न गच्छेत् ।।१३।। ___ अन्वयार्थ:-हे इदभूति ! (एगतविट्ठी) केवल सम्यक्त्व की है दृष्टि जिनकी और (अपरिग्गहेड) ममस्य' माव रहित ऐसे जो (धीरे) बुद्धिमान मनुष्य हैं वे (एयाणि) इन (गरगाणि) नरक के दुखों को (सोच्चा) सुन कर (सव्वलोए) सम्पूर्ण लोक में (किंचण) किसी भी प्रकार के जीवों की (न) नहीं (हिंमए) हिंसा करें (लोयस्स) कर्म रूप लोक को (ज्झिन) बान कर वस) उसकी साधीमता में (न) नहीं (गच्छे) जावे । भावार्थ:-हे गौतम ! जिसने सम्यस्त्व' को प्राप्त कर लिया है और ममत्व से विमुख हो रहा है ऐसा बुद्धिमान तो इस प्रकार के नारकीय दुखों को एक मात्र सुन कर किसी भी प्रकार की कोई हिमा नहीं करेगा। यही नहीं, वह क्रोध, मान, माया, लोम तया अहंकार रूप लोक के स्वरूप को समझ कर और उसके आधीन हो कर कभी भी कर्मों के वाधनों को प्राप्त न करेगा । वह स्वर्ग में जाकर देवता होगा । देवता चार प्रकार के हैं। ये यों हैमूल:--देवा चउबिहा बुत्ता, ते मे कित्तयओ सुण । भोमेज्ज वाणमन्तर, जोइस वेमाणिया तहा ।।१४।। छायाः-देवाश्चतुर्विधा उक्ता:, तान्मे कीर्तयन:, श्रण । भौमेया व्यन्तरा:, ज्योतिष्का वैमानिकास्तथा ॥१४॥ अम्बयार्थ: है इन्द्रभूति ! (देवा) देवता (चविहा) चार प्रकार के (वृत्ता) कहे हैं 1 (ते) वे (मे) मेरे द्वारा (कित्तयओ) कहे हुए तू (सुण) श्रवण कर (मोमेज वाणमंतर) भवन पति, वाणव्यन्तर (तहा) लपा (जोइस वेमाणिया) ज्योतिषी और वैमानिक देव ।
SR No.090301
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size4 MB
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