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________________ निसंम्प-प्रवचन मूल:--बालाणं अकामं तु, मरणं असई भवे । पंडिआणं सकामं तु, उक्कोसेणं सई भवे ।।६।। छायाः-बालानामकामं तु, मरणमराकृद् भवेत् । पण्डितानां सकामं तु, उत्कर्षेण सकृद् भवेत् ।।६।। अन्वयार्थ:-है इन्द्रभूति ! (बालाणं) अज्ञानियों का (अकाम) निष्काम (मरण) मरण (सु) तो (असई) बार बार (म) होता है। (तु) और (पंडिआणं) पण्डितों का (सकाम) इच्छा सहित (मरणं) मरण (उस्कोसेणं) उत्कृष्ट (सई) एक बार (मवे) होता है ।। भावार्थ:-हे गौतम ! दुष्कर्म करने वाले अज्ञानियों को तो बार-बार जन्मना और मरना पड़ता है। और जो ज्ञानी हैं वे अपना जीवन ज्ञान पूर्वक सदाचार मय बना कर मरते हैं वे एक ही बार में मुक्ति पाम को पहुंच जाने हैं। या सात-पाठ भव से तो ज्यादा जन्म-मरण करते ही नहीं है। मूल:--सत्थम्गहणं विसभरखणं च, जलणं च जलपवेसोय । अणायारभंडसेबी, जम्मणमरणाणि बंधति ।।७।। पाया:--शस्त्रग्रहणं विषभक्षणं च, ज्वलनं च जलप्रवेशश्च । अनाचारभाण्डसेवी च, जन्ममरणानि बध्यते ॥७॥ अन्वयार्थ:-हे इण्टमूति ! जो आत्मघात के लिए (सत्यागहणं) शस्त्र ग्रहण करे (च) और (विसमक्खण) विष भक्षण करे (च) और (जलणं) अग्नि में प्रवेश करे, (जलपवेसो) जल में प्रवेश करे (य) और (अणाचारमंडरोयी) नहीं सेवन करने योग्य सामग्री की इच्छा करे । ऐसा करने से (जम्ममरणागि) अनेक जन्म-मरण हो ऐसा कर्म (बंधति) बांधता है। भावार्थ:-हे गौतम ! जो आत्म-हत्या करने के लिए, तलवार, बरछी, फटारी, आदि शास्त्र का प्रयोग करे । या अफीम, संखिया, मोरा, बछनाग, हिरकणी आदि का उपयोग करे, अथवा अग्नि में पड़ कर, या अग्नि में प्रवेश कर या कुआ, बाबड़ी, नदी, तालाब में गिर कर मरे तो उसका यह मरण
SR No.090301
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size4 MB
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