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________________ वैराग्य-सम्बोधन १७७ नष्ट करते हैं, (मेधाविणो) बुद्धिमान् (लोमममा) लोम तथा मद से (वतीता) रहित (संसोसिणो) संतोषी होते हैं, वे (पावं) पाप (नो पकरेंति) नहीं करते हैं। ___ भावार्ष: हे गौतम ! हिंसादि के द्वारा पूर्व-संचित कर्मों को हिंसादि ही से जो अज्ञानी जीव नष्ट करना चाहते हैं, यह उनकी मूल है। प्रत्युत कर्मनाश के बदले उनके गाढ़ कर्मों का बंध होता है। क्योंकि खून में भीगा हुआ कपड़ा खून ही के द्वारा कभी साफ नहीं होता है, बुद्धिमान् नो वही हैं, जो हिंसादि के द्वारा बंधे हुए कर्मों को अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, आकिंचम्य आदि के द्वारा नष्ट करते हैं । और वे लोभ और मद से रहित हो कर संतोषी हो जाते हैं । वे फिर मविष्यत् में नबीन पाप कर्म नहीं करते हैं। यहां "लोम' पाब्द राग का सूचक और 'मद' द्वेष का सूचक है । अतएव लोम-मया शब्द का अर्थ राग-द्वेष समझना चाहिए। मूल-डहरे य पाणे वुड्ढे य पाणे, ते आत्तो पासइ सव्वलोए । उन्बेहती लोगमिणं महतं, बुद्धेऽपमत्ते सु परिव्वएज्जा ॥१६॥ छायाः-डिभश्च प्राणो वृद्धश्च प्राणः, स आत्मवत् पश्यति सर्वलोकान् । उत्प्रेक्षते लोकमिमं महान्तम्, बुद्धोऽप्रमत्तेषु परिव्रजेत् ॥१९॥ अन्वपापं:-हे इन्द्रभूति ! (डहरे) छोटे (पाणे) प्राणी (य) और (बुड्ढे) बड़े (पाणे) प्राणी (ते) उन सभी को (सम्वलोए) सर्व लोक में (आत्तओ) आत्मवत् (पासइ) जो देखता है (इणं) इस (लोग) लोक को (मईत) बड़ा (उबेहती) देखता है (बुद्ध) वह तत्त्वज्ञ (अपपत्तेसु) बालस्य रहित संयम में (परिवएजा) गमन करता है।
SR No.090301
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size4 MB
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